दिल्ली. हिमाचल प्रदेश में पांच निजी विश्वविद्यालयों में पदस्थ कुलपतियों की शासन व यूजीसी की ओर से निर्धारित पात्रता व शर्तें संदेह के घेरे में आ गई हैं। यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की ओर से इन पांच निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की योग्यता की जांच के लिए गठित कमेटी ने गंभीर आपत्तियां दर्ज की हैं, अब इनकी जांच होगी। माना ज रहा है कि इस फैसले की जांच उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के निजी विश्वविद्यालयों तक पहुंच सकती है, क्योंकि यहां भी जब तब निजी विश्वविद्यालयों की भी शिकायतें मिलती रहती हैं।
जानकारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की ओर से प्रदेश के कुछ निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की योग्यता की जांच के लिए गठित कमेटी ने कई गंभीर आपत्तियां उठाई हैं। इन आपत्तियों के मद्देनजर विश्वविद्यालय प्रशासन से शैक्षणिक योग्यता से जुड़े जरूरी दस्तावेज मांगे हैं ताकि यूजीसी व राज्य सरकार की ओर से इस पद के लिए निर्धारित योग्यता व पात्रता की विधिवत जांच की जा सके।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल आयोग ने कई कुलपतियों को अयोग्य ठहराया था। नए सिरे से इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति हुई है। नियामक आयोगकी ओर से पूर्व में ही इस आशय के निर्देश विश्वविद्यालयों को दिए थे कि कुलपति की नियुक्ति यूजीसी के निर्धारित मापदंडों के अनुरूप ही हो। हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग के अध्यक्ष मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अतुल कौशिक ने बातचीत में मीडिया से कहा कि कमेटी ने पांच कुलपतियों की योग्यता को लेकर कुछ आपत्तियां लगाई हैं। रिकार्ड आने के बाद इस पर आगामी निर्णय होगा।
यूजीसी के फैसले से अयोग्य शिक्षकों को राहत
हिमाचल प्रदेश के 16 निजी विश्वविद्यालयों में अयोग्य घोषित 35 फीसद स्टाफ को यूजीसी से राहत मिली है। यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कालेजों में सहायक प्रोफेसर की भर्ती के लिए पीएचडी अनिवार्यता को दो साल के लिए आगे बढ़ा दिया है। यूजीसी की ओर से इस बाबत एक अधिसूचना भी जारी की गई है। इसमें पीएचडी उपाधि की अनिवार्यता की तारीख को पहली जुलाई, 2021 से बढ़ाकर पहली जुलाई, 2023 कर दिया गया है। यानी इस दौरान होने वाली सहायक प्रोफेसर की सीधी भर्ती के लिए अनिवार्य योग्यता के रूप में पीएचडी की अनिवार्य नहीं होगी। आयोग ने निजी विश्वविद्यालयों को लिखे पत्र कहा है कि जिन सहायक प्रोफेसरों के पास पीएचडी की उपाधि नहीं है, वे सभी तय समय अवधि के भीतर अपनी पीएचडी पूरी करा लें। यदि कोई शिक्षक ऐसे हैं जो नेट पास नहीं हैं तो उनके स्थान पर नए सिरे भर्ती की जाए।
उधर निजी विश्वविद्यालयों की कुलपति की योग्यता की जांच का मामले की आंच उत्तर प्रदेश भी पहुंच सकती है। हालांकि हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की ओर से की जा रही है लेकिन इसकी प्रकृति और शिकायतों के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में भी आंच पहुंच सकती है। यहां बताना सही होगा कि निजी विश्वविद्यालयों के प्रशासन व शैक्षिक कामकाज को लेकर भी आए दिन शिकायतें मिलती रहती हैं लेकिन निजी क्षेत्र होने के कारण अधिकांश शिकायतें दब जाती हैं लेकिन अब जब हिमाचल हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग नेयह पड़ताल तो अपने कार्यक्षेत्र हिमाचल प्रदेश में ही की है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अन्य राज्य भी इस रास्ते पर चल सकते हैं।