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Lucknow education news : हमें अपनी लोककलाओं के महत्व को समझने और उनके विकास और संरक्षण में योगदान देने की जरूरत : मिथिला चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण

  • भारतीय चित्रकला की एक प्रमुख शैली है मिथिला चित्रकला

लखनऊ , 13 दिसम्बर . भारत को अपनी समृद्ध विरासत, संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस विशालतम देश में हजारों संस्कृतियों और लोक कलाओं ने जन्म लिया है लेकिन संरक्षण और देखरेख के अभाव में कई प्राचीनतम कलाओं को खो चुके हैं, और कुछ आज भी दम तोड़ते नज़र आ रहे हैं। हमे अपने लोककलाओं के महत्व को समझना होगा और उनके विकास और संरक्षण मे अपना योगदान देना होगा , तभी हम अपने कला संस्कृति को बचाने में समर्थ हो सकेंगे। आज मिथिला कला को संरक्षण और सहयोग प्राप्त है जिसके कारण यह कला फल फूल रही है। इसी प्रकार हर प्रदेश की कला को संरक्षण मिलनी चाहिए ताकि कलाकार इस परंपरा को बढ़ाते रहें ।

campus news :  यह बातें मंगलवार को डा0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के वास्तु कला एवं योजना संकाय  (Dr. APJ Abdul Kalam Technical University – (AKTU), Lucknow )  में मधुबनी चित्र कला पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण और कार्यशाला में मधुबनी बिहार से आए मिथिला चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण ने कही। भूपेंद्र कुमार अस्थाना  ( bhupendra k. asthana  Fine Art Professional )  ने बताया की कार्यशाला के दूसरे दिन अवधेश कुमार कर्ण ने संकाय के 12×9 ft. दीवार पर मिथिला कला का एक चित्र भी उकेरा जिसका विषय प्रकृति को बचाने का संदेश देता है । इस दौरान संकाय के आर्ट्स एंड ग्राफिक के शिक्षक गिरीश पांडे , धीरज यादव , रत्नकान्त प्रिया और बड़ी संख्या में छात्र भी उपस्थित रहे।

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Lucknow education news :  भारतीय चित्रकला की एक प्रमुख शैली है मिथिला चित्रकला। जो बिहार मे खास तौर पर प्रचलित है । इसके अलावा नेपाल से भी इसका संबंध माना जाता है । बिहार में खासकर मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सिरहा और धनुषा जैसे आदि जिलों की प्रमुख कला है। शुरुआत में ये पेंटिंग्स घर के आंगन और दीवारों पर रंगोली की तरह बनाई जाती थीं। समय के साथ धीरे-धीरे ये कपड़ों, दीवारों और कागजों पर पेंटिंग की जाने लगी। इसके विषय हिंदू देवताओं और पौराणिक कथाओं और सामाजिक के आसपास होते हैं, जिसमें प्रकृति,धर्म और सामाजिक संस्कारों के चित्रों को ग्रामीण परिवेश में उकेरा जाता है। जिसमे मिथिलांचल की संस्कृति कला को दर्शाया जाता है। इस शैली के चित्रों में चटख रंगों का खूब इस्तेमाल होता है, जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला। आज मधुबनी कला वैश्वीकृत कला रूप बन गई है।

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Dr. APJ Abdul Kalam Technical University – (AKTU), Lucknow news : आज मधुबनी (बिहार) इन चित्रों का एक प्रमुख निर्यात केंद्र भी है। इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना। यह कला महिला प्रधान होने के साथ साथ आज इसे पुरुषों ने भी अपनाया है । और आज इस कला के माध्यम से लोक कलाकार अपना जीवन यापन कर रहे हैं और निरंतर क्रियाशील हैं । इस पारंपरिक कला को बढ़ावा देने, उभरते कलाकारों को प्रशिक्षित करने और मार्गदर्शन के लिए’ अनेकों कलाकारों को सम्मान दिया गया है । मिथिला कला को आज भी पुराने लोग ‘लिखिया’ कहते हैं।

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