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चित्रकला प्रदर्शनी मठा 198 : मौलिक चिंतन पर आधारित और मौलिक शैली में निरूपित हैं अवधेश मिश्र के चित्र : आचार्य रविन्द्र नाथ मिश्र

लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार अवधेश मिश्र चित्र प्रदर्शनी देखने आए युवाओं के साथ
  • अवधेश मिश्र के चित्र उत्कृष्ट कलात्मक विशेषता के साथ अपने बचपन में लौटा देते हैं : आचार्य उत्तमा दीक्षित
  • राम छाटपार शिल्प न्यास, इंडिया में कलाचार्य अवधेश मिश्र के चित्रों की प्रदर्शनी का समापन

वाराणसी/लखनऊ, 15 मार्च । राम छाट पार शिल्प न्यास, भारत, वाराणसी द्वारा आयोजित लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार अवधेश मिश्र (Dr Awadhesh Misra, D Litt, Dr Shakuntala Misra National Rehabilitation University, Lucknow.) की चित्रकला प्रदर्शनी मठा 198 का आज समापन था। इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय के पूर्व अधिष्ठाता आचार्य रविंद्र नाथ मिश्र, विभागाध्यक्ष चित्रकला आचार्य उत्तमा दीक्षित, महिला महाविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की चित्रकला विभाग अध्यक्ष आचार्य सरोज रानी, ललित कला संस्थान के प्रधानाचार्य अवधेश कुमार सिंह, बीएचयू के आचार्य सुरेश जांगिड़, वरिष्ठ साहित्यकार वाचस्पति एवं वरिष्ठ कलाकार अमला सिंह के साथ अनेक कला विद्यार्थी उपस्थित थे। कला विद्यार्थियों ने चित्रकार अवधेश मिश्र की कला और रचना प्रक्रिया पर संवाद किया और कला के विचार तथा बारीकियों को सीखा।

लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार डाक्टर अवधेश मिश्र चित्र प्रदर्शनी देखने आए युवाओं के साथ

आचार्य रवींद्रनाथ ने कहा कि अवधेश (Dr Awadhesh Misra, D Litt, Dr Shakuntala Misra National Rehabilitation University, Lucknow.) का काम मौलिक चिंतन पर आधारित और मौलिक शैली में निरूपित उत्कृष्ट कार्य है। आचार्य सरोज रानी ने कहा कि यह प्रदर्शनी सभी रचनाकारों के लिए अवलोकनीय है। अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि यह प्रदर्शनी जीवन उत्सव है, चित्रों के रंग-रूप, आकार सभी कलाकार के ग्रामीण जीवन की अनुभूतियों की प्रांजल अभिव्यक्ति है। बीएचयू के आचार्य सुरेश जांगिड़ ने कहा कि लोक जीवन की जटिलताओं के बीच उत्साह और उत्सव के रंगों की सुंदर प्रदर्शनी देखने की खुशी अविस्मरणीय है।

लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार डाक्टर अवधेश मिश्र चित्र प्रदर्शनी देखने आए युवाओं के साथ

वरिष्ठ कलाकार अमला सिंह ने कहा की माटी से जुड़ी अभिव्यक्ति और जीवन के विविध रंग हमारी स्मृतियों में उतरकर अतीत के गलियारे में लेकर चले गए। सुंदर एवं मौलिक चित्र। निखिलेश प्रजापति ने कहा कि उत्सव के चटक रंगों से भरे उजाले व अंधेरे का गांव जिसमें पक्षियों में गौरैया, कौवा व पशुओं में कुत्ते के चहल-पहल के दर्शन हमारे परिवेश से उठकर शहर की ओर चल पड़े हैं, स्वागत है शहर में गांव के रंगों का।

आचार्य उत्तमा दीक्षित ने कहा कि इस प्रदर्शनी के मनमोहक रंगों को देखकर लगता है कि फिर से अपने गांव, अपने मेले ठेले और खेत खलिहान में जाएं, दौड़े भागें, उछलें कूदें, जोर-जोर से चिल्लाकर अपने में अपने को ढूंढें। ऐसी प्रदर्शनी याद रहेगी। प्रदर्शनी क्यूरेटर आचार्य मदनलाल गुप्ता  राम छाटपार शिल्प न्यास, इंडिया सामने घाट, लंका, वाराणसी रहे।

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