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पूरा पढि़ए जरूर… चेला तुम्बी भरके लाना… तेरे गुरु ने मंगाई

चेला तुम्बी भरके लाना…
तेरे गुरु ने मंगाई

चेला भिक्षा ले के आना…
गुरु ने मंगाई

पहली भिक्षा जल की लाना–
कुआँ बावड़ी छोड़ के लाना
नदी नाले के पास न जाना
तुंबी भर के लाना

दूजी भिक्षा अन्न की लाना
गाँव नगर के पास न जाना
खेत खलिहान को छोड़के लाना
लाना तुंबी भर के
तेरे गुरु ने मंगाई

तीजी भिक्षा लकड़ी लाना
डांग-पहाड़ के पास न जाना
गीली सूखी छोड़ के लाना
लाना गठरी बनाके
तेरे गुरु ने मंगाई

चौथी भिक्षा मांस की लाना
जीव जंतु के पास न जाना
जिंदा मुर्दा छोड़ के लाना
लाना हंडी भर के
तेरे गुरु ने मंगाई…..
चेला तुंबी भरके लाना

कल यहां गाँव के लोगों से बिल्कुल देशी धुन में एक गीत सुना रात को

गुरु चेले की परीक्षा ले रहे हैं

चार चीजें मंगा रहे हैं –
जल, अन्न, लकड़ी, मांस

लेकिन शर्तें भी लगा दी हैं
अब देखना ये है कि चेला लेकर आता है या नहीं
इसी परीक्षा पर उसकी परख होनी है

जल लाना है, लेकिन बारिश का भी न हो, कुएं बावड़ी तालाब का भी न हो। अब तुममें से कोई नल मत कह देना या मटका या आरओ कह बैठो। सीधा मतलब किसी दृष्ट स्त्रोत का जल न हो।

अन्न भी ऐसा ही लाना है। किसी खेत खलिहान से न लाना, गाँव नगर आदि से भी भिक्षा नहीं मांगनी।

लकड़ी भी मंगा रहे हैं तो जंगल पहाड़ को छुड़वा रहे हैं, गीली भी न हो सूखी भी न हो, और बिखरी हुई भी न हो, यानी बंधी बंधाई, कसी कसाई हो।

मांस भी मंगा रहे हैं तो जीव जंतु से दूरी बनाने को कह रहे हैं और जिंदा या मुर्दा का भी नहीं होना चाहिए।

मैं चेला होता तो फेल होता परीक्षा में

लेकिन यह प्राचीन भारत के गुरुओं द्वारा तपा कर पका कर तैयार किया गया शिष्य है। आजकल के पढ़े लिखों से लाख बेहतर है।

गीत समाप्त होता है लेकिन रहस्य बना रहता है।

आज एक बुजुर्ग से पूछा तो खूब हंसे।

कहने लगे–अरे भगवन, क्यों मज़ाक करते हो। आपको तो सब पता है।

मेरी बालकों जैसी मनुहार पर रीझकर धीरे से बताते हैं– नारियल

देखो पहले बर्तन नहीं रखते थे सन्त सन्यासी। लौकी होती है एक गोल तरह की, तुम्बा कहते हैं उसको। वही पात्र रखते थे। पहले तो उसको भर के लाने की कह रहे हैं।

अब नारियल को देखो, जल भी है इसमें और कुएं बावड़ी नदी झरने का भी नहीं है, अन्न भी है इसमें–(अद्द्यते इति अन्नम)–जो खाया जाए वह अन्न है, लेकिन खेत खलिहान, गाँव शहर का भी नहीं है।

तीसरी चीज लकड़ी भी है। ऊपर खोल पर, अंदर गीला भी है, बाहर सूखा भी है और एकदम बंधा हुआ भी है, कसकर।

अंतिम में कहते हैं मांस भी लाना–यानी कोई गूदेदार फल। इस मांस शब्द के कारण शास्त्रों के अर्थों के खूब अनर्थ हुए हैं, बालबुद्धि लोगों द्वारा।

चेला नारियल लेकर आता है और गुरु का प्रसाद पाता है आशीर्वाद रूप में।

कितना रहस्य छुपा हुआ है पुरानी कहावतों एवं लोकगीतों में।

बुजुर्गों के पास बैठकर यह सब सुनना चाहिए, इससे पहले कि यह अंतिम पवित्र पीढ़ी इस दुनिया को अलविदा कहे

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