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Dr. A.P.J. Abdul Kalam Technical University lucknow News : पोर्ट्रेट चित्रण, चित्रकला का एक प्रमुख अंग है – अमित ढाने, और भी बहुत कुछ कहा…

  •  किसी भी कला को करने के लिए साधना की बहुत जरूरत है, कला बिना साधना के संभव नहीं
  • अमित ने बताया मैं जब काम करता हूँ तो मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करता

लखनऊ ,5 दिसम्बर.Faculty of Architecture and Planning, AKTU news:  पोर्ट्रेट एक व्यक्ति की पेंटिंग,छवि, मूर्ति, या अन्य कलात्मक अभिव्यक्ति होती है, जिसमें चेहरा और उसकी अभिव्यक्ति प्रमुख होती है।आशय, व्यक्ति के रूप, व्यक्तित्व और यहां तक कि उसकी मनोदशा को भी प्रदर्शित करना होता है। जब कलाकार खुद अपना चित्र बनाता है तो उसे आत्म-चित्रांकन कहते हैं। हमारे अंदर विचारों का भंडार है जो समय समय पर हमारे चेहरों पर प्रदर्शित होता है। तमाम भाव भावभंगिमा हमारे चेहरे पर रंगों के माध्यम से उभरते रहते हैं। कलाकार उन्ही विचारों को रंगों के साथ उकेरता है। हमे चित्र बनाते समय इन विचारों को महसूस करना चाहिए तभी ऐसे चित्र सम्भव होते हैं। हमे अच्छे चित्र बनाने के लिए अच्छे मैटेरियल का भी प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि यह हमारी मेहनत होती है। तमाम कलाकारों ने अपने आत्मचित्रण किये हैं। प्राकृतिक और स्टुडियों के प्रकाश में अंतर होता है। प्राकृतिक प्रकाश पल पल बदलता रहता है इसलिए जब हम प्राकृतिक प्रकाश में चित्र बनाते हैं तो बहुत चौकन्ना रहना पड़ता है। स्टुडियों में हम अपनी मुताबिक प्रकाश डाल कर पोर्ट्रेट बना सकते हैं। किसी भी कला को करने के लिए साधना की बहुत जरूरत है। कला बिना साधना के संभव नहीं साथ ही बहुत धैर्य की भी आवश्यकता होती है। उक्त बातें सोमवार को वास्तुकला एवं योजना संकाय,(Faculty of Architecture and Planning, AKTU) टैगोर मार्ग,लखनऊ स्थित आर्ट स्टूडिओ मे महाराष्ट्र पुणे से आए जल रंग पोर्ट्रेट विशेषज्ञ अमित ढाने ने अपने विचारों में व्यक्त किया।

भूपेंद्र कुमार अस्थाना ( Bhupendra K. Asthana (@bhupendraasthana) ने बताया की सोमवार को संकाय प्रांगण में आयोजित जल रंग माध्यम में पोर्ट्रेट डिमोन्सट्रेशन में काफी संख्या में वास्तुकला के छात्रों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम लगभग 3 घंटे के लिए आयोजित किए गए। अमित ढाने ने उपस्थित छात्रों में से ही एक छात्र के पोर्ट्रेट के लिए चुना। इस दौरान ढाने ने छात्रों को पोर्ट्रेट बनाने से संबन्धित बहुत सी बारीकियों से अवगत कराया ,और जानकारी दी। जैसे छाया प्रकाश, जल रंग का प्रयोग कैसे करें, सर्वप्रथम पोर्ट्रेट के लिए उसका रेखांकन कैसा होना चाहिए, साथ ही रंगों स्ट्रोक आदि। अमित ढाने ने बताया की मीडियम की अपनी सीमा होती है। पोर्ट्रेट के लिए केवल यही धारणा नहीं है कि वह रियलिस्टिक ही हो बल्कि पोर्ट्रेट के साथ बहुत से प्रयोग भी कलाकारों ने किए हैं अपने दृष्टिकोण से। जो क्रिएटिव पोर्ट्रेट के रूप में देखते हैं। दूसरों के पोर्ट्रेट के साथ स्वयं के भी पोर्ट्रेट बनाना भी एक अद्भुत प्रयोग है ।अपने आपको सीसे में देखकर बनाना या ख़ुद को कल्पना करना भी एक चुनौती पूर्ण कार्य होता है।

मौलिक अभिव्यक्ति को ही सर्वप्रथम अभिव्यक्त करना चाहिए

अमित ढाने ने छात्रों को बताया की हमें अपनी मौलिक अभिव्यक्ति को ही सर्वप्रथम अभिव्यक्त करना चाहिए । आज लोग अपना दिमाग कम बल्कि आधुनिक गैजेट के इस्तेमाल ज्यादा करते हैं । कुछ भी बनाना होता है तो हम कॉपी करना शुरू कर देते हैं जो की कला में बहुत ही हानिकारक है। अमित ने बताया की मैं जब काम करता हूँ तो मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करता जब तक कार्य पूर्ण नही हो जाता। कार्यक्रम के दौरान वास्तुकला संकाय की अधिष्ठाता डॉ वंदना सहगल, संकाय अध्यक्ष  राजीव कक्कड़,मोहम्मद सबहात, कला शिक्षक गिरीश पांडे, धीरज यादव,भूपेंद्र कुमार अस्थाना एवं रत्नप्रिया कान्त सहित वास्तुकला के छात्र उपस्थित रहे।

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