- फ्री होने से कम हो गया परीक्षाओं का महत्व
- लोगों ने कहा फ्री का क्रेडिट लेकर सरकारी खजाने से मनमानी ना करे सरकार
बिलासपुर. राज्य सरकार ने प्रतियोगी परीक्षाओं को फ्री कर दिया है। परीक्षार्थी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। टीईटी में बड़ी संख्या में परीक्षार्थी एबसेंट रहे। बुद्धिजीवियों को फ्री परीक्षा की परंपरा रास नहीं आ रही है। टीईटी परीक्षा के लिए बनाए गए 1336 केन्द्रों में इस मुख्य कारण से 2 लाख 31हजार 323 परीक्षार्थी शामिल नहीं हुए। यह इस परीक्षा की ड्यूटी कर रहे अधिकारियों कर्मचारियों केंद्र अध्यक्ष पर्यवेक्षकों के बीच चर्चा का विषय बन गई।
शिक्षक संस्कार श्रीवास्तव ने छत्तीसगढ़ सरकार के इस निर्णय को गैर जरूरी आपत्तिजनक बताते हुए सोशल मीडिया पर अभियान चलाया। जिसमें लोगों ने ऐसी पहल को औचित्यहीन सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाला बताया। इस व्यवस्था को लोग फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन तक बता दिए। फ्री के कारण बहुत से परीक्षार्थियों ने इसको गंभीरता से नहीं लिया। कोई शुल्क नहीं होने के कारण ज्यादा से ज्यादा लोगों ने परीक्षा का फॉर्म भरा। क्योंकि उनका पैसा खर्च नहीं हुआ इसीलिए इस परीक्षा की महत्ता को भी उन्होंने महत्त्व नहीं दिया। सोच रही कि जेब से कुछ नहीं जा रहा है। इस मानसिकता के साथ परीक्षा में बहुत एबसेंट हो गए। इस लिहाज से यह परीक्षा मजाक बना दी गई।
फेसबुक पर टिप्पणी हुई कि जो चीज फोकट में मिलती है उसकी कोई वैल्यू नहीं होती फोकट वाली चीजों का कोई सम्मान नहीं होता। छत्तीसगढ़ सरकार को सभी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं को फ्री में लेने की परंपरा तुरंत बंद करना चाहिए। परीक्षा के आयोजन में जितनी लागत आ रही हो कम से कम इतनी फीस रखी जानी चाहिए । इसमें बुकलेट आंसरशीट का निर्माण छपाई परीक्षा में जुटे सभी अधिकारियों कर्मचारियों का परिश्रमिक और समस्त कागजातों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचाने जैसे संबंधित खर्च शामिल होना चाहिए।इस लागत के अनुसार फीस तय कर परीक्षा लेना चाहिए। वही जनरल ओबीसी एसटी एससी सभी के लिए एक समान फीस रखनी चाहिए। जाति के अनुसार इसमें किसी प्रकार की राहत नहीं दी जानी चाहिए।
पूर्व शिक्षिका मीरा मिश्रा ने कहा It’s wastage of money. It should not be without fee. Government will raise the price to compensate this loss.”
( यह जनता के पैसों को व्यर्थ किया जाना है। इसे बिना किसी शुल्क के आयोजित नहीं होना चाहिए था। सरकार को करोड़ों की क्षति पूर्ति करने के लिए आने वाली परीक्षाओं के शुल्क में वृद्धि करनी चाहिए)
पूर्व प्राचार्य रमाशंकर श्रीवास्तव , रवि शंकर दुबे तुलसीराम दुबे ने भी सरकार की इस पहल के प्रति अपनी असहमति जताई।
Fact File – केवल एक परीक्षा में 2 लाख 31323 परीक्षार्थियों के एबसेंट रहने के कारण साढ़े 3 करोड़ रुपए बर्बाद हो गए। इसकी भरपाई कौन करेगा ? वहीं लाखों बुकलेट आंसरशीट बर्बाद हो गई। वह रद्दी के भाव हो गई। कागज का नुकसान हुआ सो अलग जबकि हमारी सरकार पर्यावरण संरक्षण का ढो़ल पीटती है। पेपरलेस टिकट पासबुक जैसे एनवायरनमेंट को सपोर्ट करने वाली कोशिशें हो रही हैं।