- संगोष्ठी की संयोजक हिन्दी विभाग की अध्यक्ष एवं सह-आचार्य डॉ. गौरी त्रिपाठी ने दो दिवसीय संगोष्ठी के विषय “परंपरागत भारतीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण में स्त्रियों की भूमिका” का विस्तार से प्रवर्तन किया।
- सीयू-आईसीएसएसआर के संयुक्त तत्वावधान में संगोष्ठी का उद्घाटन
बिलासपुर, 25 अप्रैल,campussamachar.com, । गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) की कला विद्यापीठ के अंतर्गत हिंदी विभाग एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन आज 25 अप्रैल, 2024 को सुबह 10 बजे रजत जयंती सभागार में हुआ।
उद्घाटन कार्यक्रम में संगोष्ठी के मुख्य संरक्षक एवं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ( Professor Alok Kumar Chakrawal Vice Chancellor of Guru Ghasidas Vishwavidyalaya -Central University) ने कहा कि कला जीवन जीने की आत्मा है। जो इस तथ्य को पहचान जाता है उसे आत्मबोध और मुक्तिबोध हो जाता है। कला व्यक्ति के दृष्टिकोण को प्रदर्शित करने में अहम किरदार निभाती है। उन्होंने कहा कि दुनिया में सर्वोत्तम निवेश का साधन कला है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़िया संस्कृति दुनिया को सतत् विकास का संदेश देती है।
कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल ( Professor Alok Kumar Chakrawal Vice Chancellor of Guru Ghasidas Vishwavidyalaya -Central University) ने कहा कि छत्तीसगढ़ कला एवं संस्कृति में पुरातन होने के साथ ही बदलते परिवेश का साक्षी भी रहा है। छत्तीसगढ़ का बस्तर आर्ट, व्यंजनों की श्रृंखला, लोक कला और साहित्य के साथ ही जीवन जीने की सरलता इसे समूचे राष्ट्र में अलग स्थापित करती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ का वन सौंदर्य, स्थापत्य कला और आनंदित कर देने वाला वातावरण युवाओं को जानना और समझना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी शिक्षा की समग्रता के पक्ष को विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है।
प्रो. पवन सुधीर, एनसीईआरटी नई दिल्ली ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि बाबा गुरु घासीदास जी के नाम पर स्थापित यह विश्वविद्लयालय आश्रम की तरह है जहां शिक्षा को समग्र रूप से प्रसारित किया जा रहा है। कार्यशाला के विषय को समीचीन बताते हुए उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला केवल कला और सामाजिक विज्ञान से जुड़े प्रतिभागियों को लिए नहीं है बल्कि सूचना, तकनीक एवं विज्ञान से जुड़े युवाओं के लिए भी उपयोगी है जो कला एवं संस्कृति के आंतरिक संबंध को समझ सकें। युवाओं को संबोधित करते हुए प्रो. सुधीर ने कहा कि हर बीज में वृक्ष बनने की क्षमता है ऐसे में हमें अपनी योग्यता और क्षमता को पहचानना होगा।
ggu bilaspur News : इससे पूर्व संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्वलन कर मां सरस्वती एवं बाबा गुरु घासीदास के तैल चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। मंचस्थ अतिथियों का नन्हा पौधा भेंट कर स्वागत किया गया। तरंग बैंड के विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना एवं कुलगीत की प्रस्तुति दी। सह-सरंक्षक प्रो. अनुपमा सक्सेना ने स्वागत उद्बोधन दिया। संगोष्ठी की संयोजक हिन्दी विभाग की अध्यक्ष एवं सह-आचार्य डॉ. गौरी त्रिपाठी ने दो दिवसीय संगोष्ठी के विषय “परंपरागत भारतीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण में स्त्रियों की भूमिका” का विस्तार से प्रवर्तन किया।
latest Guru Ghasidas University Bilaspur News : दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर मंचस्थ अतिथियों द्वारा हिंदी विभाग की त्रैमासिक पत्रिका स्वनिम तथा संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन किया गया। अतिथियों को शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अभय एस. रणदिवे तथा संचालन डॉ. मुरली मनोहर सिंह ने किया। इस अवसर पर विभिन्न विद्यापीठों के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्षगण, अधिकारीगण, शिक्षणकगण, शोधार्थी एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।
कार्यशाला एवं तकनीकी सत्रों का आयोजन
Guru Ghasidas University Bilaspur News : संगोष्ठी के समानांतर सत्र में प्रो. पवन सुधीर ने कार्यशाला आयोजित कर प्रतिभागियों को कला एवं सस्कृति से जुड़े विभिन्न पहलूओं का प्रायोगिक ज्ञान उपलब्ध कराया। प्रथम तकनीकी सत्र में साहित्य में परम्परागत कलाओं की भूमिका विषय पर विशेष वक्ता डॉ. राजाराम त्रिपाठी, प्रयोगधर्मी किसान वैज्ञानिक व संपादक, ककसाड़ पत्रिका, छत्तीसगढ़ ने अपने विचार व्यक्त किये। परंपरागत संगीत के संरक्षण में स्त्रियों की भूमिका विषय पर रेखा देवार, छत्तीसगढ़ी ददरिया लोक-कलाकार ने तथा परंपरागत कला और संस्कृति के विकास में विश्वविद्यालयों की भूमिका विषय पर प्रो. मनीष श्रीवास्तव, आचार्य अंग्रेजी विभाग ने अपने विचार साझा किये। इस दौरान प्रतिभागियों द्वारा शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण भी किया गया।