लखनऊ। लखीमपुर खीरी कांड के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति कुछ इस अंदाज में चलने लगी है कि लगता है कि विधानसभा चुनाव समय से पहले हो जाएंगे। हालांकि इस बीच आए एक सर्वे ने यह बात साफ कर दी है कि मामूली वोट प्रतिशत गवां कर भाजपा पुन: आसानी से सत्ता में वापसी कर लेगी। इसी सर्वे में समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस के चुनावी फायदे का जिक्र किया गया है, जो अभी सत्ता प्राप्ति से दूर हैं और हाल-फिलहाल इन विपक्षी दलों में ऐसी कोई संभावना भी नजर नहीं आ रही है, जिससे ऐसा लगा कि सभी संयुक्त विपक्षी गठबंधन बनाकर योगी सरकार को मात दे सकते हैं।
मूल मुद्दे पर लौटते हुए लखीमपुर खीरी कांड के पुराने घटनाक्रम पर चर्चा करने से अधिक महत्वपूर्ण है वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य। रविवार को वाराणसी में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका वाड्रा गांधी ने रैली कर ऐलान किया कि जब तक केंद्रीय गृहमंत्री अजय मिश्रा का त्यागपत्र नहीं हो जाता है, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। इनकेे साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी मंच साझा किया और अपने भी भाषण देकर सीएम योगी की विफलताएं गिनाईं।
यह बताना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बड़ी जिम्मेदारी दी है, ऐसे में वे भी आए दिन उत्तर प्रदेश के दौरे पर रहते हैं जबकि प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी अपने ढंग से कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर चुकी है और अभियान चलाकर पार्टी की सत्ता में वापसी चाहती है।
इन सबके बीच बहुजन समाज पार्टी ने भी कार्यकर्ताओं के बीच अपनी सक्रिया तेज करते हुए हाल ही एक बड़ा कार्यक्रमों का आयोजन कर यह संदेश देने में कामयाबी पाई है कि पार्टी वर्ष २००७ की तरह फिर से सत्ता पाएगी। छोटे-छोटे दल हालांकि बड़े दलों की तरह लखीमपुर खीरी कांड में सक्रिय नहीं दिखे लेकिन फिर वे मैदान में है। कार्यकर्ताओं और आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण ऐसे दलों की अपनी सीमाएं हैं और एक निश्चित सीमा तक ही विरोध सकते हैं। प्रसपा के मुखिया शिवपाल यादव भी इनमें से एक माने जा सकते हैं, जो बार-बार पूर्व सीएम अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करने की पेशकश करते हुए खुद को कमजोर आंकने लगे हैं।
ऐसी ही परिस्थितयों में एक बड़ा काम किया है इलेक्शन मैनेजमेंट के जरिए चुनाव जिताऊ की छवि बना चुके पीके। यानि प्रशांत किशोर। उन्होंने एक टृवीट किया। आशय था कि जो लोग लखीमपुर खीरी कांड को ध्यान में रखकर ग्रांड ओल्ड पार्टी की रिवाइवल की सोच रहे हैं, वे गलत हैं, क्योंंकि इस ग्रांड ओल्ड पार्टी में संस्थागत कमजोरियां हैं। इस ट्वीट के पहले माना जा रहा था कि पीके कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं और रविवार को यह चर्चा कि पीके अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में शामिल होंगे लेकिन इस ट्वीट का असर बहुत हुआ।
असर यह कि कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस पर हमला बोल दिया तो टीएमसी ने कांग्रेसी मुख्यमंत्री को अमेठी की राहुल गांधी की याद करा दी। बात यहीं खत्म नहीं हुई अभी दोनों ओर से हमला जारी था कि शिवसेना के मुखपत्र सामना ने विपक्ष के लिए एकमात्र विकल्प राहुल गांधी बता दिया और टीएमएसी नेता-मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी को खेल बिगाडृू तक बता डाला। आगे भी इसी तरह की क्रिया-प्रतिक्रिया चलती रहेगी।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये सभी विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए रणनीति बनाने में जुटे थे। मीटिंग दर मीटिंग भी हुई और इसमें एनसीपी के शरद पवार और एक पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा भी सक्रिय रहे लेकिन पीके के ट्विटर के बाद बदली राजनीतिक हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं। मोदी सरकार को बेदखल करने की रणनीति बनाने वाले आपस में ही एक दूसरे को निपटाने की रणनीति बनाने में जुट गए। अब वाकई बड़ा सवाल यही है कि क्या विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को बाहर करने के प्रति गंभीर हैं या फिर नूराकुश्ती जैसी लड़ाई ही लड़ रहे हैं।