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CG News : जानिए Chhattisgarh के कौन हैं वैद्य निर्मल अवस्थी , जिन्हें बाबा रामदेव के पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट ने किया आमंत्रित, पारंपरिक ज्ञान आधारित स्वास्थ्य परंपरा पर अनुसंधान एवं औषधीय पौधों पर देंगे ज्ञान

  • अवस्थी ने बताया कि अतिबला जो छत्तीसगढ़ राज्य में बहुत मात्रा में उपलब्ध है इस पौधों से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है इस पर वे अपने अनुभव पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट हरिद्वार में रखने वाले हैं। 

रायपुर , 15 मार्च  2024 campussamachar.com  ।  पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट हरिद्वार उत्तराखंड ( Patanjali Research Institute, Haridwar, India ) द्वारा कल 16 मार्च 2024 को जिज्ञासा कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ राज्य के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैद्य निर्मल कुमार अवस्थी संचालक संचालक परंपरागत ज्ञान एवं वनौषधि विकास फाउंडेशन को उनके विचारों अनुभवों एवं भारतीय लोक स्वास्थ्य परंपरा के संवाहक पारंपरिक वैद्यों के उत्थान, संरक्षण, संवर्द्धन के साथ साथ उनके पारंपरिक ज्ञान आधारित स्वास्थ्य परंपरा पर अनुसंधान एवं औषधीय पौधों के माध्यम से सतत् आजीविका विकास के लिए आमंत्रित किया गया है।

Latest Bilaspur News : उल्लेखनीय है कि अवस्थी विगत 32 वर्षों से भारत के विभिन्न राज्यों के पारंपरिक वैद्यों को संगठित कर उनके कौशलता और पारंपरिक ज्ञान के आधार पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हेतु पहल की है। सन् 2019 में छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के पुनर्गठन में अपनी अहम् भूमिका छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग के माध्यम से सरकार तक छत्तीसगढ़ राज्य के पारंपरिक वैद्यों के संबंध में एक सेतु का काम किया और यह पहली बार हुआ कि इस बोर्ड में दो आदिवासी जनजाति समुदायों से बतौर सदस्य पद हेतु चयनित हुए थे। हाल में ट्रिपल आईटी जम्मू-कश्मीर में उन्होंने ने छत्तीसगढ़ राज्य की जनजातीय पारंपरिक उपचार पद्धति पर अपने अनुभव को साझा किया आप पारंपरिक ज्ञान के विशेषज्ञ हैं और औषधीय पौधों से अनुरोध किया जाता है कि वे उस दिन एक भाषण दें।

Latest Patanjali Research Institute, Haridwar News : निर्मल कुमार अवस्थी बिलासपुर छत्तीसगढ़ के निवासी हैं वे विगत 32 वर्षों से आदिवासी जनजाति समुदायों की स्वास्थ्यगत परंपरागत प्रणाली के अध्ययन और दस्तावेज संधारण कार्य किया है एवं छत्तीसगढ़ राज्य के परंपरागत वैद्यों की पहचान हेतु पहल की है। वर्ष 2010-12 में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय दिल्ली के माध्यम से 62 पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान का स्वैच्छिक प्रमाणीकरण योजना जो आयुष मंत्रालय की गाइडलाइंस पर क्वालिटी कांउसिल आफ इंडिया नई दिल्ली द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य के पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान का स्वैच्छिक प्रमाणीकरण योजना का लाभ दिलाया था वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य जैवविविधता बोर्ड वन विभाग छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग से 300 बस्तर एवं सरगुजा आदिवासी अंचलों के पारंपरिक वैद्यों को इस योजना का लाभ दिलाने में मदद की है,  जिसका प्रभाव पारंपरिक वैद्यों की पहचान के साथ उनके मनोबल ऊंचा उठाने एवं संगठित करने में सहायक साबित हुई है। भारतीय पारंपरिक ज्ञान आधारित औषधीय पौधों की नर्सरी एवं निःशुल्क वितरण कर औषधीय पौधों का ज्ञान स्वस्थ जीवन की पहचान हेतु जन जागरूकता अभियान छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड वन विभाग छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग से चलाया गया जिसमें लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं स्टार बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है।

CG News in hindi :  अवस्थी ने बताया कि अतिबला जो छत्तीसगढ़ राज्य में बहुत मात्रा में उपलब्ध है इस पौधों से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है इस पर वे अपने अनुभव पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट हरिद्वार में रखने वाले हैं ताकि छत्तीसगढ़ राज्य में वनस्पति जैवविविधता एवं पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक आधार दिया जा सके अवस्थी स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र डा हरी सिंह केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर मध्य प्रदेश के सलाहकार भी हैं।  उन्होंने ने मध्य प्रदेश के अति प्राचीन आदिम जनजाति बैगा के पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान आधारित अनुसंधान हेतु ज्ञान का दस्तावेजीकरण संधारण कार्य किया है और वनवासियों स्थानीय पारंपरिक वैद्यों को औषधीय पौधों के माध्यम से जैवविविधता अधिनियम के तहत ए बी एस यानी लाभ का बंटवारा समुदायों को मिल सके इसके लिए आदिवासी जनजाति समुदायों को इस योजना के माध्यम से सतत् आजीविका विकास से जोड़ा जा सके।

Patanjali Research Institute, Haridwar News : अवस्थी ने बताया कि एन आई एफ एवं सोसायटी फॉर इथनोफार्मोकोलाजी के माध्यम से ट्रिपल आईटी अनुसंधान जम्मू-कश्मीर के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य कुछ विशेष औषधीय पौधों पर अनुसंधान की सहमति बनी है । अवस्थी ने कहा कि हम पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट हरिद्वार उत्तराखंड में परंपरागत ज्ञान के संवाहक पारंपरिक वैद्यों को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन बना कर उनकी स्वास्थ्य परंपरा का संवर्द्धन संरक्षण एवं सतत् आजीविका विकास की अवधारणा सुनिश्चित करने हेतु जा रहें हैं आज वर्तमान में पारंपरिक वैद्यों ने इस वैज्ञानिक युग में भी अपने स्वास्थ्य परंपरा नहीं छोड़ी है और समाज में वे आज भी त्वचा, मधुमेह,उदर रोग , हड्डियों एवं वात रोगों का सफल उपचार कर रहे हैं इसके अलावा जहरीले जीव जंतु काटने का भी उपचार कर रहे हैं,  जिसके कारण समाज का एक बड़ा तबका इन्हें मान्यता दिया हुआ है इस लिए अवस्थी इस पारंपरिक वैद्यों की उपचार पद्धति का वैज्ञानिक आधार देने हेतु दृढ़ संकल्पित भाव से काम कर रहे हैं।

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