युगाब्द (कलियुग) – 5125
फाल्गुन – बारवहां महीना
शुक्ल – प्रथम पक्ष
तिथि – चतुर्थी ( 04 थी)
वार/दिन- बुधवार ( 04 था वार/दिन )
शुभ ज्योति के पुंज, अनादि, अनुपम,
ब्रह्माण्ड -व्यापी, आलोक – कर्ता ।
दारिद्रय, दु:ख, भय से मुक्त कर दो,
पावन बना दो, हे देव सविता ।।
✍ शास्त्रों में सूर्य (सविता) को देवता (देने वाला) कहा गया है । वस्तुतः सूर्य प्राणि जगत को निरन्तर प्राण(जीवन) देता रहता है ।
✍ सूर्य से बनस्पति(पेड़, पौधे)को ऊर्जा/प्राण एवम बनस्पति से मनुष्य को आक्सीजन (प्राण) मिलता है ।
✍ पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है ।इतनी दूरी के बावजूद हम सबको निर्बाध अपने प्रकाश, प्रखरता, तेजस्विता, ऊष्मा से पोषित करता रहता है ।
✍ सूर्य हमे मूक सन्देश/प्रेरणा देता है कि मेरे जैसे पवित्र, प्रकाशवान एवम ऊर्जावान बनो और अपने साथ-साथ, दूसरों का भी जीवन रोशन करो ।
आज तिथि ५१२५/ १२-०१-०४/ ०४ युगाब्द ५१२५/ फाल्गुन शुक्ल पक्ष, चतुर्थी, बुधवार “विनायक चतुर्थी” की पावन मंगलबेला में, सूर्य जैसा प्रबल, ऊर्जावान एवम परोपकारी बनने से स्वयं को संकल्पित एवम आपको भी प्रेरित करते हुए, नित्य की भाँति, आपको मेरा “राम-राम” ।
व्यस्त रहेंगे-तो मस्त रहेंगे
मस्त रहेंगे-तो स्वस्थ रहेंगे