- नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद,गंगा तट पर इसलिए नहीं जाते हैं कि, नर्मदा जी से मिलने गंगा जी स्वयं आती है | आज माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाने की परंपरा है।
- श्री नर्मदा पुराण का संक्षिप्त रूप लेख के रूप में माँ नर्मदा की महिमा से आप सभी को परिचित कराने के लिए प्रस्तुत हैं।
“त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे। नर्मदा सरितां वरा -नर्मदा को सरितां वरा” क्यों माना जाता है ?
नर्मदा माता की असंख्य विशेषताओ में श्रीनर्मदा की कृपा द्रष्टि से दिखे कुछ कारण यह है :-
नर्मदा सरितां वरा।
-नर्मदा नदियों में सर्वश्रेष्ठ हैं !
नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद,गंगा तट पर इसलिए नहीं जाते हैं क्योंकि नर्मदा जी से मिलने गंगा जी स्वयं आती है। नर्मदा नदी पर ही नर्मदा पुराण है। अन्य नदियों का पुराण नहीं हैं। नर्मदा अपने उदगम स्थान अमरकंटक में प्रकट होकर नीचे से ऊपर की और प्रवाहित होती हैं,जबकि जल का स्वभाविक हैं ऊपर से नीचे बहना। नर्मदा जल में प्रवाहित लकड़ी एवं अस्थियां कालांतर में पाषण रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। नर्मदा अपने उदगम स्थान से लेकर समुद्र पर्यन्त उत्तर एवं दक्षिण दोनों तटों में,दोनों और सात मील तक पृथ्वी के अंदर ही अंदर प्रवाहित होती हैं।
पृथ्वी के उपर तो वे मात्र दर्शनार्थ प्रवाहित होती हैं। उलेखनीय है कि भूकंप मापक यंत्रों ने भी पृथ्वी की इस दरार को स्वीकृत किया हैं। नर्मदा से अधिक तीव्र जल प्रवाह वेग विश्व की किसी अन्य नदी का नहीं है। नर्मदा से प्रवाहित जल घर में लाकर प्रतिदिन जल चढाने से नर्मदा का जल बढ़ता है।
नर्मदा तट में जीवाश्म प्राप्त होते हैं। अनेक क्षेत्रों के वृक्ष आज भी पाषण रूप में परिवर्तित देखे जा सकते हैं। नर्मदा से प्राप्त शिवलिग ही देश के समस्त शिव मंदिरों में स्थापित हैं क्योकि शिवलिग केवल नर्मदा में ही प्राप्त होते हैं अन्यत्र नहीं। नर्मदा में ही बाण लिंग शिव एवं नर्मदेश्वर (शिव ) प्राप्त होते है अन्यत्र नहीं। नर्मदा के किनारे ही नागमणि वाले मणि नागेश्वर सर्प रहते हैं अन्यत्र नहीं। नर्मदा का हर कंकड़ शंकर होता है, उसकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती क्योकि वह स्वयं ही प्रतिष्ठित रहता है।
नर्मदा में वर्ष में एक बार गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं ही नर्मदा जी से मिलने आती हैं। नर्मदा राज राजेश्वरी हैं, वे कहीं नहीं जाती हैं। नर्मदा में समस्त तीर्थ वर्ष में एक बार नर्मदा के दर्शनार्थ स्वयं आते हैं। नर्मदा के किनारे तटों पर वे समस्त तीर्थ अद्रश्य रूप में स्थापित है जिनका वर्णन किसी भी पुराण धर्मशास्त्र या कथाओं में आया हैं।
नर्मदा का प्रादुर्भाव सृष्टिंके प्रारम्भ में सोमप नामक पितरों ने श्राद्ध के लिए किया था। नर्मदा में ही श्राद्ध की उत्पति एवं पितरो द्वारा ब्रह्माण्ड का प्रथम श्राद्ध हुआ था अतः नर्मदा श्राद्ध जननी हैं। नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा ही एक मात्र ऐसी देवी (नदी ) हैं जो सदा हास्यमुद्रा में रहती है। नर्मदा तट पर ही सिद्दी प्राप्त होती है। ब्रम्हांड के समस्त देव, ऋषिमुनि, मानव भले ही उनकी तपस्या का क्षेत्र कही भी रहा हो, सिद्धि प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट पर अवश्य आये हैं।
नर्मदा तट पर सिद्धि पाकर ही वे विश्व प्रसिद्ध हुए हैं। नर्मदा के प्रवाहित जल में नियमित स्नान करने से असाध्य चर्मरोग मिट जाता है। नर्मदा के प्रवाहित जल में तीन वर्षों तक प्रत्येक रविवार को नियमित स्नान करने से श्वेत कुष्ठ रोग मिट जाता हैं किन्तु कोई भी रविवार खंडित नहीं होना चाहिए। नर्मदा स्नान से समस्त क्रूर ग्रहों की शांति हो जाती है। नर्मदा तट पर ग्रहों की शांति हेतु किया गया जप पूजन हवन तत्काल फलदायी होता है। नर्मदा अपने भक्तों को जीवन काल में दर्शन अवश्य देती हैं भले ही उस रूप में हम माता को पहिचान न सके। नर्मदा की कृपा से मानव अपने कार्य क्षेत्र में एक बार उन्नति के शिखर पर अवश्य जाता है। नर्मदा कभी भी मर्यादा भंग नहीं करती है।
वे वर्षा काल में पूर्व दिशा से प्रवाहित होकर पश्चिम दिशा के ओर ही जाती हैं जबकि अन्य नदियाँ वर्षा काल में अपने तट बंध तोडकर अन्य दिशा में भी प्रवाहित होने लगती हैं। नर्मदा पर्वतो का मान मर्दन करती हुई पर्वतीय क्षेत्रमें प्रवाहित होकर जन धन हानि नहीं करती हैं। (मानव निर्मित बांधों को छोडकर।) अन्य नदियाँ मैदानी रेतीले भूभाग में प्रवाहित होकर बाढ़ रूपी विनाशकारी तांडव करती हैं। नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अद्भुत आलौकिक सौन्दार्य से समस्त सुरों , देवो को चमत्कृत करके खूब छकाया था। नर्मदा की चमत्कारी लीला को देखकर शिव पर्वती हसते -हसते हांफने लगे थे। नेत्रों से अविरल आनंदाश्रु प्रवाहित हो रहे थे।
उन्होंने नर्मदा का वरदान पूर्वक नामकरण करते हुए कहा – देवी तुमने हमारे ह्रदय को अत्यंत हर्षित कर दिया। अब पृथ्वी पर इसी प्रकार नर्म (हास्य, हर्ष) दा (देती रहो) अतः आज से तुम्हारा नाम नर्मदा होगा। नर्मदा के किनारे ही देश की प्राचीनतम-कोल, किरात, व्याध, गोंड़, भील, म्लेच्छ आदि जनजातियों के लोग रहा करते थे। वे बड़े शिव भक्त थे।
नर्मदा ही विश्व में एक मात्र ऐसी नदी हैं जिनकी परिक्रमा का विधान हैं, अन्य नदियों की परिक्रमा नहीं होती हैं। नर्मदा का एक नाम दक्षिण गंगा है। नर्मदा मनुष्यों को देवत्व प्रदान कर अजर अमर बनाती हैं। नर्मदा में ६० करोड़,६०हजार तीर्थ है। (कलियुग में यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होते।) नर्मदा चाहे ग्राम हो या वन सभी स्थानों में पवित्र हैं जबकि गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में ही अधिक पवित्र मानी गई हैं।
नर्मदा दर्शन मात्र से ही प्राणी को पवित्र कर देती हैं जबकि सरस्वती तीन दिनों तक स्नान से, यमुना सात दिनों तक स्नान से गंगा एक दिन के स्नान से प्राणी को पवित्र करती हैं। नर्मदा पितरों की भी पुत्री हैं अतः नर्मदा तट पर किया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है। नर्मदा शिव की इला नामक शक्ति हैं। नर्मदा को नमस्कार कर नर्मदा का.नामोच्चारण करने से सर्प दंश का भय नहीं रहता है। नर्मदा के इस मंत्र का जप करने से विषधर सर्प का जहर उतर जाता है।
नर्मदाये नमः प्रातः,नर्मदाये नमो निशि।
नमोस्तु नर्मदे तुम्यम, त्राहि माम विष सर्पतह।
(प्रातः काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार, हे नर्मदा तुम्हे नमस्कार है, मुझे विषधर सापों से बचाओं।
(साप के विष से मेरी रक्षा करो।)
नर्मदा आनंद तत्व, ज्ञान तत्व, सिद्धि तत्व, मोक्ष तत्व प्रदान कर शाश्वत सुख शांति प्रदान करती हैं। नर्मदा का रहस्य कोई भी ज्ञानी विज्ञानी नहीं जान सकता है। नर्मदा अपने भक्तो पर कृपा कर स्वयं ही दिव्य दृष्टि प्रदान करती है।
नर्मदा का कोई भी दर्शन नहीं कर सकता है। नर्मदा स्वयं भक्तों पर कृपा करके उन्हें बुलाती है। नर्मदा के दर्शन हेतु समस्त अवतारों में भगवान् स्वयं ही उनके निकट गए थे। नर्मदा सुख शांति समृद्धि प्रदायनी देवी हैं। नर्मदा वह अमर तत्व हैं ,जिसे पाकर मनुष्य पूर्ण तृप्त हो जाता है।
नर्मदा देव एवं पितृ दोनो कार्यों के लिए अत्यंत पवित्र मानी गई हैं। नर्मदा का सारे देश में श्री सत्यनारायण व्रत कथा के रूप में इति श्री रेवा खंडे कहा जाता है। श्री सत्यनारायण की कथा अर्थात घर बैठे नर्मदा का स्मरण। नर्मदा में सदाशिव शांति से वास करते हैं क्योंकि जहाँ नर्मदा हैं और जहां शिव हैं, वहां नर्मदा हैं। नर्मदा शिव के साथ ही यदि अमरकंटक की युति भी हो तो साधक को लक्षित लक्ष्य की प्राप्ति होती हैं।
नर्मदा के किनारे सृष्टि के समस्त खनिज पदार्थ हैं। नर्मदा तट पर ही भगवान् धन्वन्तरी की समस्त औषधीयां प्राप्त होती हैं।
नर्मदा तट पर ही त्रेता युग में भगवान् श्रीराम द्वारा प्रथम बार कुंभेश्वरनाथ तीर्थ की स्थापना हुई थी जिसमें सृष्टि के समस्त तीर्थों का जल, ऋषि मुनियों द्वारा कुम्भ घटों में लाया गया था। नर्मदा के त्रिपुरी तीर्थ देश का केंद्र बिंदु भी था।
नर्मदा नदी ब्रम्हांड के मध्य भाग में प्रवाहित होती हैं। नर्मदा हमारे शरीर रूपी ब्रह्माण्ड के मध्य भाग (ह्रदय ) को पवित्र करें तो हृदय स्थित अष्टदल कमल पर कल्याणकारी सदा शिव स्वयमेव आसीन हो जावेगें।
नर्मदा का ज्योतिष शास्त्र मुह्र्तों में रेखा विभाजन के रूप में महत्त्व वर्णित हैं। (भारतीय ज्यातिष )
नर्मदा के दक्षिण और गुजरात के भागों में विक्रम सम्बत का वर्ष ,कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को प्रारंभ होता हैं।(भारतीय ज्यातिष) नर्मदा सर्वदा हमारे अन्तः करण में स्थित हैं। नर्मदा माता के कुछ शव्द सूत्र उनके चरणों में समर्पित हैं। उनका रह्र्स्य महिमा भगवान् शिव के अतिरिक्त कौन जान सकता हैं ? नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद,गंगा तट पर इसलिए नहीं जाते हैं कि, नर्मदा जी से मिलने गंगा जी स्वयं आती है | आज माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाने की परंपरा है।
💐#श्रीनर्मदाष्टकम💐
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम।
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम।।
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम।
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं।।
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं।
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम।।
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा।
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा।।
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं।
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम।।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै।
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:।।
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं।
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं।।
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे।
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे।।
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा।
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा।।
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम।
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
( नोट – प्रस्तुति ललित अग्रवाल -विभिन्न स्रोतों से सामग्री लेकर यह स्टोरी तैयार की गयी है, लोगों के विचार इससे अलग भी हो सकते हैं , उनके विचारों का भी स्वागत हैं । )