- गुरू साहिब जी ने अपने गुरूओं द्वारा प्रदत्त गुरू का लंगर प्रथा को आगे बढाया।अन्धविश्वास, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया गया।
भिलाई, 30 अक्तूबर । campussamachar.com, गुरुद्वारा श्री गुरु अर्जन देव जी हाउसिंग बोर्ड भिलाई में आज 30 अक्तूबर 2023 सोमवार को सिख सम्प्रदाय के चौथी पातशाही चौथे गुरु श्री रामदास साहेब जी का जन्मोत्सव प्रकाश पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया।गुरुद्वारा श्री गुरू अर्जन देव जी की प्रबंधक कमेटी द्वारा अमृतसर शहर के संस्थापक चौथी पातशाही श्री गुरु रामदास साहेब जी के प्रकाश पर्व को यादगार बनाने के लिये समाज के द्वारा दिनाँक 29 अक्तूबर 2023 से गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी के अखंड पाठ रखा गया था।जिसकी समाप्ति आज गुरु साहिबान की जयंती पर आज 30 अक्तूबर 2023 को हुई।गुरु साहिबान जी की जीवनी से श्रद्धालुओं को जोड़ने के गुरुद्वारे साहेब के ग्रंथी श्री गुरमीत सिंह जी के द्वारा गुरु साहिबान जी की जीवनी के प्रमुख घटनाओं की व्याख्या उपस्थित साध संगत के समक्ष की गई।जिसे सुनकर सभी श्रद्धालु निहाल हो गये।
bhilai news today : इसके बाद हाउसिंग बोर्ड गुरुद्वारे के हजूरी रागी जत्थे भाई प्रभजोत सिंघ द्वारा कीर्तनों के माध्यम से#गुरु साहिबान के संदेशों से साध संगत को जोड़कर निहाल किया गया। इसके बाद गुरुद्वारे में श्रद्धालुओं द्वारा सरबत (सर्वत्र) के भले की अरदास की गई।व कड़ाह प्रसाद बांटा गया।इसके उपस्थित संगत ने प्रसाद रूपी लंगर ग्रहण किया।समाज के श्रद्धालुओं ने नौनिहालों को गुरु साहेब का इतिहास व उनके गुणों के बारे में बताते हुए प्रेरित किया गया।कि उनके उपदेशों से शिक्षा लेकर हमें अपने जीवन में अपनी बुराइयों को हराकर अपना जीवन देश हित में समर्पित करना है।
#गुरु साहिब जी के इतिहास में संगत को बताया गया कि #गुरु श्री रामदास साहेब जी को गुरु की उपाधि 9 सितंबर 1574 को दी गयी थी।जब विदेशी आक्रमणकारी एक शहर के बाद दूसरा शहर तबाह कर रहे थे, तब ‘चौथे नानक’ गुरू राम दास जी महाराज ने एक पवित्र शहर रामसर, जो कि अब अमृतसर के नाम से जाना जाता है, का निर्माण किया।गुरू राम दास (जेठा जी) का जन्म चूना मण्डी, लाहौर (अब पाकिस्तान में) में कार्तिक वदी २ सम्वत 1591 (24 सितम्बर 1534) को हुआ था। उनका परिवार बहुत गरीब था।वे उबले हुए चने बेच कर अपना जीवन यापन करते थे। जब वे मात्र 7 वर्ष के थे, उनके माता पिता की मृत्यु हो गयी।फिर उन्होंने नानी के साथ रहकर 5 वर्षों तक उबले हुए चने बेच कर अपना जीवन यापन किया।इसके बाद #रामदास जी अपनी नानी के साथ गोइन्दवाल आकर वहां भी उबले चने बेचकर जीवन यापन कर #गुरू अमरदास साहिब जी द्वारा धार्मिक संगतों में भी भाग लेने लगे। उन्होंने गोइन्दवाल साहिब के निर्माण की सेवा की। वे भारत के विभिन्न भागों में लम्बे धार्मिक प्रवासों के दौरान गुरु अमरदास जी के साथ रहे।गुरू रामदास जी अपनी भक्ति एवं सेवा के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गये थे।
#गुरू अमरदास साहिब जी ने उन्हें हर पहलू में गुरू बनने के योग्य पाकर 10 सितम्बर 1574 को उन्हें ‘चौथे नानक’ के रूप में स्थापित किया। गुरू रामदास जी ने ही ‘चक रामदास’ या ‘रामदासपुर’ की नींव रखी जो कि बाद में अमृतसर कहलाया। यह शहर व्यापारिक दृष्टि से लाहौर की ही तरह महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया। गुरू रामदास साहिब जी ने स्वयं विभिन्न व्यापारों से सम्बन्धित व्यापारियों को इस शहर में आमंत्रित किया। यहाँ सिक्खों के लिए भजन-बन्दगी का स्थान बनाया गया। इस प्रकार एक विलक्षण सिक्ख पंथ के लिए नवीन मार्ग तैयार हुआ।
#गुरू रामदास साहिब जी ने ‘मंजी पद्धति’ का संवर्द्धन करते हुए ‘मसंद पद्धति’ का शुभारम्भ किया। गुरू रामदास साहिब जी ने सिख धर्म को विवाह ‘आनन्द कारज’ के लिए ‘चार लावों’ (फेरों) की रचना की और सरल विवाह की गुरमत मर्यादा को समाज के सामने रखा। इस प्रकार उन्होने सिक्ख पंथ के लिए एक विलक्षण वैवाहिक पद्धति दी। इस प्रकार इस भिन्न वैवाहिक पद्धति ने समाज को रूढिवादी परम्पराओं से दूर किया।गुरू साहिब जी ने अपने गुरूओं द्वारा प्रदत्त गुरू का लंगर प्रथा को आगे बढाया। अन्धविश्वास, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया गया।