महासमुंद. पूरे छत्तीसगढ़ के साथ महासमुंद ज़िले में प्राकृतिक झाड़ूओं का अपना ही एक खास महत्व एवं स्थान है। यहां विशेष प्रकार की झाड़ूओं का चलन है, जिसमें सबसे अधिक लोकप्रिय घास, खजूर के पत्ते, आदि से बनने वाले झाड़ू आते हैं। झाड़ू उन उत्पादों की श्रेणी में आता है, जिसकी मांग वर्ष भर लगभग एक जैसी ही बनी रहती है। ज़िले की ग्रामीण महिलायें अपने रोज़मर्रा कामकाज एवं खेती किसानी के साथ प्राकृतिक सामग्री खजूर के पत्ते का विभिन्न आकर का झाड़ू बनाती है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अंतर्गत ज़िले की इच्छुक महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया गया है।
महासमुन्द जिले के विकासखण्ड की ग्राम पंचायत ओंकारबंद की जय माँ खल्लारी स्व-सहायता समूह से जुड़ी रुखमणी पारधी, शिवबती छोटी सी खेती किसानी के साथ-साथ खजूर के पत्ते से झाड़ू, चटाई एवं अन्य घरेलू सामग्री बनाने का काम करती है। वे कहती है कि इससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। श्रीमती पारधी आगे बताते हुए कहा कि जंगल, खेतों की मेड़ या अन्य जगह पर लगे खजूर के पेड़ से पत्ते लाती है। लाने में कठिनाई होती है। तोड़े गए पत्तों को सिर पर ढोकर लाना पड़ता है। पत्ते तोड़ने के लिए हँसिया आदि का उपयोग करती है। बारिश में दूरस्थ अंचल के जंगल से पत्ते लाने में कई बाधाएं आती है। इसके अलावा पत्ते सूखने में भी समस्या आती है। इसलिए खजूर पत्ते इकट्ठे करने और सुखाने का काम माह मई के अंत तक कर लेते है। वैसे झाड़ू बनाने का काम कुछ दिन बारिश को छोड़ बारह महीने होता है।
पारधी बताती है कि ज़िले के ग्रामीण घरों की अभी भी कमरें, आँगन दलान आदि कच्ची होती है। जिस पर खजूर के झाड़ू से सफ़ाई करने में आसानी और अच्छी होती है। इस कारण ग्रामीण हाट-बाज़ार में यह आसानी से बिक जाते है। एक झाड़ू की क़ीमत 25 रुपए से 50 रुपए तक है। लेकिन मेहनत को देखते हुए कम है। खेती किसानी के साथ-साथ 5000 से 6000 की कमाई आसानी से हो सकती है।
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