- प्रदर्शनी में विभिन्न माध्यमों में रचे गए 56 चित्र प्रदर्शित किए जाएंगे
- प्रशांत चौधरी द्वारा रचे गए चित्रों में समाज में व्याप्त कुरीतियों पर ध्यान आकर्षित किया गया है
- प्रदर्शनी का उद्घाटन कला स्रोत आर्ट गैलरी, अलीगंज, लखनऊ में आज किया जायेगा
लखनऊ. लखनऊ के युवा चित्रकार प्रशांत चौधरी के नवीनतम चित्रों की श्रृंखला “दंश” की प्रदर्शनी का उद्घाटन कला स्रोत आर्ट गैलरी, अलीगंज, लखनऊ में कल किया जायेगा। प्रदर्शनी की मुख्य अतिथि “कला दीर्घा” अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका की प्रकाशक अंजू सिन्हा और विशिष्ट अतिथि प्रख्यात कलाकार एवं कला समीक्षक डॉअवधेश मिश्र होंगे। प्रदर्शनी में विभिन्न माध्यमों में रचे गए 56 चित्र प्रदर्शित किए जाएंगे। कला स्रोत आर्ट गैलरी के निदेशक अनुराग डिडवानिया और मानसी डिडवानिया ने बताया कि प्रशांत चौधरी द्वारा रचे गए चित्रों में समाज में व्याप्त कुरीतियों पर ध्यान आकर्षित किया गया है जो 12 अक्तूबर तक कला प्रेमियों के लिए 12 से 7:00 बजे शाम तक प्रदर्शित रहेंगे।
कला समीक्षक और शिक्षाशास्त्री डॉ लीना मिश्र ने प्रदर्शनी के कैटलॉग में लिखा है कि प्रशांत की नवीनतम चित्र श्रृंखला के चित्रों को देखें तो एक चित्र में जोंक के मुंह से एक लड़की निकल कर कंटीले डंडे पर चल रही है । आगे भी जोंक यानि समस्या बैठी उसकी राह देख रही है। यह आज की सच्चाई है। हम जिस तरह निश्चिन्त होकर बेटे को घर के बाहर भेज सकते हैं वैसे बेटी को नहीं। समाज कब बदलेगा? प्रशांत की चिंताएं यहीं ख़त्म नहीं होती हैं, वह लिंग भेद, वर्ग भेद, सामजिक और आर्थिक असमानता, तंत्र की असंवेदनशीलता, नैतिक अवमूल्यन, धन लोलुपता, अपनी संस्कृति और संस्कारों के प्रति उदासीनता को लेकर है जिसे वह बहुविधि चित्रित करते उपस्थित होते हैं।
स्त्रियों का असम्मान, मांसाहार के प्रति बढ़ता आकर्षण, बच्चियों के जन्म के पूर्व हत्या, स्वच्छता के प्रति असंवेदनशीलता, घूसखोरी के कारण कार्यालय की फाइल्स का रुके रहना, छोटी बहनों को गोंद में लिए भीख मांगती बच्चियां, वरिष्ठ नागरिकों से अनुचित व्यवहार, बच्चों का समय खाते इलेक्ट्रॉनिक गजेट्स, बिखरता बचपन और बाल मजदूरी, चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ अभिजात्य, पहाड़ और समुद्र को भी कचरा युक्त बनाते जोंकरूपी मनुष्य, अपने अधिकारों के प्रति महिलाओं की असंवेदनशीलता, सर्कस वाली लड़की, कुकुरमुत्ते की तरह फैलते शोषक शिक्षण संस्थान, फास्टफूड की ओर बढ़ता बच्चों का आकर्षण, दादा-दादी से दूर होते नाती-पोते, अनाथ बच्चों की बजाय अभिजात्य वर्ग का कुत्तों के प्रति आकर्षण, कुर्सी की दौड़, स्मार्ट फोन के कारण दूर होती पुस्तकें, बढ़ती मंहगाई और अभावग्रस्त जीवन, सरोगेसी के दुष्परिणाम और अन्य सामाजिक विद्रूपताओं को विषय बनाकर सतत चित्रण करते हुए प्रशांत समाज की इस सच्चाई के प्रति लोगों का ध्यानाकर्षण कर रहे हैं।
संकेत दे रहे हैं कि अभी भी समय है कि हम प्रकृति और अपनी संस्कृति की ओर लौटें और दुनिया के समक्ष एक मिसाल कायम करें। अपने ढंग की यह अनोखी प्रदर्शनी बच्चों से बूढ़ों तक गरीबों से अमीरों तक कुरीतियों के रूप में प्रकारांतर से झेले जा रहे दंश के प्रति संवेदनाएं जगाने में सक्षम होगी और यही प्रशांत के एक कलाकार होने की सफलता है।