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Korba Jain Samaj : अनंत सिद्ध आत्माओं के समूह का नियम विधि पूर्वक क्रियाएं करना ही सिद्धचक्र विधान है – विधानाचार्य पंडित वीरेंद्र कुमार शास्त्री जी

  • सागर से पधारे हुए स्वर संगीतकार श्री अरविंद जैन जी एवं ग्रुप ने अपने मधुर मधुर संगीत के माध्यम से 1024 मंत्रों की आहुति दी.
  • प्रतिदिन की भांति प्रातः 7:00 बजे भगवान श्री जी का अभिषेक एवं शांति धारा हुई।

कोरबा , 30 दिसम्बर ,campussamachar.com,   अनंत सिद्ध आत्माएं सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुकी हैं भविष्य में भी होती रहेगी इन सबके समूह को चक्र कहते हैं। और उसका नियम विधि कानून या उस विधान के अपने रीति- रिवाज अपनाते हुए क्रियाएं करना ही सिद्ध चक्र विधान है।

उक्त विचार बुधवारी बाजार स्थित दिगंबर जैन मंदिर कोरबा में जैन मिलन समिति द्वारा आयोजित श्री सिद्धचक्र मंडल विधान के कार्यक्रम के तहत सागर मध्यप्रदेश से पधारे विधानाचार्य पंडित वीरेंद्र कुमार शास्त्री जी अपने प्रवचन के दौरान सिद्धचक्र महामंडल पर विस्तृत विधान का अर्थ एवं महिमा पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सिद्धचक्र महामंडल विधान में तीन शब्द हैं ।जो अत्यंत सार गर्भित है। सिद्ध का अर्थ है आठों कर्मों से मुक्त अपनी आत्मा जो मोक्ष में विराजमान हो गई है। संसार के समस्त दुखों का मूल कारण, इस जीव के अपने कर्म है। जिन्हें नष्ट करके यह आत्मा अनंत सुख शांति के साथ हमेशा हमेशा को मोक्ष में विराजित है। यही सिद्ध भगवान है ।अनंत आत्माएं सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुकी हैं और भविष्य में भी होती रहेगी। इन सबके समूह को चक्र कहते हैं ।और “विधान” का अर्थ है नियम। विधि कानून या कहें उसे विधान के रीति- रिवाज जिन्हें अपनाते हुए क्रियाएं की जाती है ।सिद्ध संसार की आत्माएं ही बनती हैं ।जो जाति, धर्म, वर्ग या प्राणी मात्र शुभ कर्म करके (अशुभ कर्मों को छोड़कर )शुद्ध आत्मा का ध्यान करके ही संभव है। इस प्रकार सिद्धचक्र महामंडल विधान का अर्थ है कि अनंत सिद्ध आत्माओं के समूह का नियम पूर्वक, विधि -विधान पूर्वक क्रियाएं करना ही सिद्धचक्र महामंडल विधान है।

korba news today इस प्रकार प्रतिदिन की भांति प्रातः 7:00 बजे भगवान श्री जी का अभिषेक एवं शांति धारा हुई। श्रीजी की महाआरती की गई। दीप प्रज्वलन आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी की प्रतिमा पर किया गया।उसके बाद मुनि श्री १०८ शीतल सागर महाराज जी को शास्त्र दान किया गया। तत्पश्चात मुनि श्री १०८शीतल सागर महाराज जी का प्रवचन हुआ। उन्होंने प्रवचन के दौरान बताया कि सिद्धचक्र महामंडल विधान पुण्य कोष को बढ़ाने वाला, आने वाली विपत्तियों का नाश करने वाला और हमारे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि देने वाला है। यह सिद्धचक्र महामंडल विधान अत्यधिक संचित पुण्य से ही संभव हो पाता है ।इस विधान को श्रावकजन आसानी से नहीं कर पाते हैं ।तीव्र पुण्य से ही ऐसे महिमावंत विधान को करने में समर्थ होते हैं ।यह तो हमारी समाज सौभाग्यशाली है जो कि यह सिद्धचक्र महामंडल विधान रचकर जन्म-जन्म के अशुभ कर्मों को शांत करके सुख शांति और समृद्धि की ओर बढ़ रही है। इस प्रकार से मुनि श्री जी नेआज उक्त सिद्धचक्र महामंडल विधान की महिमा पर प्रकाश डाला।तत्पश्चात सिद्ध चक्र महामंडल का विधान प्रारंभ हुआ।

korba news : इस प्रकार सागर से पधारे हुए स्वर संगीतकार श्री अरविंद जैन जी एवं ग्रुप ने अपने मधुर मधुर संगीत के माध्यम से 1024 मंत्रों की आहुति दी और मधुर संगीत के माध्यम से समस्त श्रोतागणों ने विधान का झूम- झूम कर , नाच- नाच कर संगीत का आनंद लिया। शाम को नेमिनाथ की बारात नामक नाटक प्रस्तुत किया गया ।एवं रात्रि कालीन की बेला में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम का लोगों ने आनंद लिया।

इस प्रकार जैन मिलन समिति के अध्यक्ष जेके जैन, उपाध्यक्ष दिनेश कुमार जैन, मुकलेश जैन सचिव श्री नेमीचंद जैन सहसचिव दीपांशु जैन एवं आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ प्रदीप जैन, उपाध्यक्ष श्री मनीष जैन बालको ,सचिव श्री मनीष जैन, कोषाध्यक्ष श्री आशीष जैन विशेष सलाहकार श्री ओम प्रकाश जैन ,अभय जैन, सुधीर जैन, अजीत लाल जैन शांत कुमार जैन , शीलचंद जैन,राजीव जैन बालको,संजय जैन एचटीटीपी ,पवन जैन ,सुबोध जैन ,राकेश जैन, सीएसईबी, मुकुल जैन ,प्रमोद जैन ,महेंद्र जैन,राजेश जैन, राकेश जैन, विशाल जैन ,राहुल जैन मंटू, वीरेंद्र जैन, देवेंद्र कुमार जैन विमल पाटनी, चक्रेश जैन, चंद्रेश जैन,दीपेश आदि जैन मिलन समिति के समस्त सदस्य उपस्थित रहे।
उक्ताशय की समस्त जानकारी जैन मिलन समिति के उपाध्यक्ष एवं आयोजन समिति के मीडिया प्रभारी श्री दिनेश ने दी।

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