लखनऊ. दीपावली के दिन आमतौर पर घरों में सूरन की सब्जी बनती है। सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है। कभी-कभी देशी वाला सूरन भी मिल जाता है ! दीपावली के 3-4 दिन पहले से ही मार्केट में हर सब्जी वाला (खास कर के उत्तर भारत में) इसे जरूर रखता है और मजे की बात है कि इसकी लाइफ भी बहुत होती है !
बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नहीं सुहाती थी, लेकिन चूँकि यही सब्जी बनती थी तो न चाहते हुए भी इसे खाना ही पड़ता था। तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये सब्जी खिला रहे हैं। माँ बोलती थी जो आज के दिन सूरन नहीं खायेगा, अगले जन्म में छछुंदर का जन्म लेगा
खाने के बाद हर कोई यह जरूर पूछता था कि तुम्हारा गला तो नहीं काट रहा.बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई, सब्जियों में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम ‘देशी सूरन की सब्जी खा लें तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में महीनों फास्फोरस की कमी नही होगी।
यह बवासीर से लेकर कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों से बचाए रखता है। इसमें फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1 और फोलिक एसिड होता है। साथ ही इसमें पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम भी पाया जाता है !
मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचिए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी। धन्य थे हमारे पूर्वज जिन्होंने विज्ञान को हमारी परम्पराओं, रीतियों और संस्कारों में पिरो दिया।
( सोशल मीडिया से साभार)