सीयू में दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का शुभारंभ
बिलासपुर. गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर एवं भारतीय इतिहास संकलन समिति छत्तीसगढ़ प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में ”स्वातंत्रय समर और छत्तीसगढ”़ विषय पर आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय (21 व 22 अक्टूबर, 2021) राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ।
विश्वविद्यालय के रजत जयंती सभागार में अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर मां सरस्वती की प्रतिमा एवं संत गुरू घासीदास के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित किये गये। इस दौरान तरंग बैंड ने सरस्वती वंदना व कुलगीत की प्रस्तुति दी। तत्पश्चात नन्हें पौधे से मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया गया।
कायज़्क्रम के मुख्य अतिथि डॉ. बाल मुकुंद पांडेय, राष्ट्रीय संगठन सचिव अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली ने कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो दिनों में पचास शोध पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता में छत्तीसगढ़ के योगदान पर चर्चा की जाएगी। स्वतंत्रता आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वालों की संख्या लाखों में है लेकिन यह दुखद है कि कुछ लोगों ने इसका श्रेय लेने का प्रयास किया। हम एक सीमा तक सहिष्णु होते हैं, हम क्षमा भी करते हैं लेकिन क्षमा की एक सीमा होती है और यह सीमा खत्म होने के बाद प्रतिरोध का जन्म होता है। सन 1498 से 1947 तक के इतिहास को अमृत महोत्सव के तहत पुनज़्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ऑनलाइन माध्यम से जुड़े विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने कहा कि इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है। हमें शोध में सार्थक प्रयास करना चाहिए। छत्तीसगढ़ ऐतिहासिक धरहरों का प्रदेश है। यहां ऐसे कई पुरातात्विक स्थल हैं राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्व के हैं। हमें ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित करना होगा और शोध के माध्यम से उनकी जानकारी देश-दुनिया तक पहुंचानी होगी।
डॉ. ओमजी उपाध्याय निदेशक भारतीय इतिहास अनुसंधान नई दिल्ली ने कहा कि स्व की पुन: स्थापन के लिए भारत के लाखों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। यहां के लोगों ने आजादी के साथ ही विभाजन की त्रासदी झेली। हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक गौरव की ओर लौटना होगा। आजादी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ के राजाओं, किसानों, मजदूरों, साहित्यकारों, पत्रकारों, महिलाओं और समाज के सभी वर्गों ने बढ़ चढकर हिस्सा लिया।
अतिथियों का शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया। कार्यक्रम के अंत में प्रो. मनीषा दुबे, अधिष्ठाता सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ ने धन्यवाद ज्ञापन एवं संचालन डॉ. गरिमा तिवारी, सहायक प्राध्यापक वानिकी विभाग ने किया।
संगोष्ठी में समस्त विद्यापीठों के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्षगण, शिक्षक, शोधार्थी एवं अन्य राज्यों से प्रतिभागी शामिल हुए। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 60 प्रतिभागियों ने पंजीयन कराया।