- विशिष्ट अतिथि के रूप में स्वामी विवेकानन्द गिरि जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज दो धर्मों के बीच समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है, अपितु दो धर्मों के मानने वाले व्यक्तियों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।
- विशिष्ट अतिथि सुमन दास जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज भारत में तकरीबन 140 करोड़ आबादी में सैकड़ों की संख्या में पूजा पद्धति और अलग अलग धर्म का अस्तित्व है।
नालंदा / पटना , 7 जून campussamachar.com, । धर्म संस्कृति संगम एवं नालन्दा खुला विश्वविद्यालय, नालन्दा के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 06 जून 2024 को नालन्दा में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का केन्द्रीय विषय ” सर्वधर्म सम्भाव का भारतीय सन्दर्भ एवं वैश्विक महत्त्व” था। कार्यक्रम का प्रारम्भ लौकिक मंगलाचरण एवं बुद्ध वंदना के साथ हुआ। स्वागत भाषण एवं विषय प्रवेश करते हुए प्रो. विजय कुमार कर्ण, अधिष्ठाता, छात्र कल्याण (नव नालन्दा महाविहार, नालन्दा) ने करते हुए कहा कि भारतीय धर्म और संस्कृति के मूल में सम भाव है। यही सम भाव यहां की पूजा – पद्धति में जीवन के उत्थान – पतन में राग और विराग में कपड़े के ताने-बाने की तरह रचा – बसा है। सभी जीव आनन्द की तरह रचा – बसा है। सभी जीव आनन्द में बाधा न बने इसके लिए दोनों को परस्पर सम भाव का व्यवहार मन – वाणी और आचरण से करना पड़ता है। जब – जब यह भाव असंतुलित होता है तब- तब कलह और क्लेश उपजता है। यही कारण है कि हमारे ऋषियों ने सत्य को एक माना है और उसे प्राप्त करने या जानने का अनेक मार्ग बताया है – ‘एकं सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति ‘। इस सिद्धान्त को समझ लेने पर सभी द्वंद समाप्त होकर मानव – मानव से अटूट प्रेम व स्नेह करने लगेगा।
उक्त कार्यक्रम में मुख्य वक्ता माननीय डॉ. इंद्रेश कुमार जी, वरिष्ठ प्रचारक (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ)ने कहा कि भारत के जन में और भारत के मन में एक विशिष्ट खुशबू है। यहां सबरी के झूठे बेर , और सुजाता की खीर खा के राम और बुद्ध भगवान हो गए । छुआ छूत मुक्त भारत सदा ही रहा है। भारत की पवित्र धरती पर भारतीय समाज में जब जब धर्मांतरण की बात आई, तब तब अनेक महापुरुषों ने समाज का मार्गदर्शन किया। समय समय पर भारत का संविधान कैसे रहना चाहिए इस पर महापूर्षों ने अपना मार्गदर्शन दिया है।भारतीय दर्शन और सनातन धर्म सदा प्राणियों में सद्भाव को बढ़ाने की बात करती है। अहिंसा परमो धर्म: की भावना को सम्बल प्रदान करती है। सजदा और हिंसा दोनों एक साथ नहीं हो सकती है। क्रोध और घृणा जैसी चीज़ को हिंसा ही माना गया है।
अपने उद्बोधन में उन्होंने विवेकानंद के उस विचारों पर बल दिया। आल्हा हु अकबर यह भक्ति का वाक्य है ,ना कि युद्ध का जयघोष है। लेकिन भाषाओं की कट्टरता की वजह से गलत परिवेश का निर्माण हो चुका है, इसको ख़तम करना भी हमारी जिम्मेदारी है। भारत के लिए छुआ छूत कैंसर की तरह है।
आज़ हमारे समाज को एक जुट रहने की आवश्यकता है। जितने भी भिन्न भिन्न धर्म पंथ के लोग हैं उन सभी में एकता लाने का समय आज है। हमें भारत को पुनः विश्व गुरु के स्थान पर स्थापित करना है। आज़ जरूरत है कि आपस में छुआ छूत न हो, दंगा मुक्त भारत हो, बेरोजगारी और महंगाई मुक्त भारत हो, बुद्ध ने भी अप्पो दीपो भव की बात की है। आज चार आर्य सत्य पर चलने का समय आ गया है। हम सभी एक होकर एक सार्वभौम धर्म की ओर आगे बढ़े। स्वयं में अच्छे बने, सब प्रकाशवान हो, सब सुखी हो, सबका कल्याण हो..यही सनातन का सन्देश है।
कार्यक्रम में पधारे विशिष्ट अतिथि के रूप में स्वामी विवेकानन्द गिरि जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज दो धर्मों के बीच समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है, अपितु दो धर्मों के मानने वाले व्यक्तियों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है। सनातन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों का उद्देश्य एक है। मानव के जीवन में दुखों से मुक्ति प्राप्त करना। मानवीय मूल्यों के कल्याण की कामना ही दोनों धर्मों का मुख्य उद्देश्य है।
इसी क्रम में मुख्य अतिथि भदंत डॉ. महिंदा थेर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत की रक्षा करना आज सनातन धर्म के लिए ज़रूरी है। सनातन धर्म में छिपे गूढ़ तथ्यों को प्रकाश में लाने के लिए संस्कृत की शिक्षा अनिवार्य है। इसके साथ ही पालि की भी शिक्षा सबके लिए अनिवार्य रूप से लागू होनी चाहिए। भाषा के संरक्षण और संवर्धन से ही हम धर्म और संस्कृति की रक्षा कर सकेंगे। यह हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि भारत के मूल में संस्कृत है और हम सबका उद्गम एक है।
इसी कड़ी में विशिष्ट अतिथि श्री सुमन दास जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज भारत में तकरीबन 140 करोड़ आबादी में सैकड़ों की संख्या में पूजा पद्धति और अलग अलग धर्म का अस्तित्व है। इन सभी धर्मों की एक सामान्य विशेषता है कि यह हम सभी को जोड़ता है। उन्होंने अपने उद्बोधन में कबीर दास जी के वाणी को केंद्र में रखकर सर्व धर्म समभाव की बात रखी। इसी श्रृंखला में विशिष्ट अतिथि स्वामी अंतर्यामी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हरेक जीव को ईश्वर से संधि करना अनिवार्य है, क्योंकि हर एक जीव ईश्वर का अंश है।
कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि के रूप में पधारे प्रो. अभय कुमार सिंह, कुलपति, नालन्दा विश्वविद्यालय, नालन्दा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें सत्य का ज्ञान होना अति आवश्यक है, क्योंकि यथार्थ सत्य का ज्ञान ही हर धर्म का ध्येय है। महात्मा बुद्ध भी उसी सत्य के ज्ञान की प्राप्ति हेतु ही अपने घर से निकले थे। यह भारत भूमि की विशेषता है कि हम भौतिक विज्ञान तक ही सीमित नहीं रह जाते ,बल्कि हम सत्य की खोज में प्राचीन कालखंड से ही जागरूक रहे हैं। हम संकीर्णता में ना रहें, हम सब मिलकर अपनी संस्कृति और धर्म के हित में काम करें। मानव कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दे, एक दुसरे को सहयोग करते हुए सत्य की राह पर सत्य की खोज में अनवरत लगे रहें।
इसी क्रम में डॉ. मोहन सिंह जी ने भी अपने विचार प्रकट किए, इस दौरान उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति ने सभी धर्मों को संरक्षण दिया है। सनातन धर्म ने कभी भी किसी भी धर्म से कभी स्वयं को असहज महसूस नहीं किया। हमने दुनियां को करुणा और शान्ति का उपदेश दिया। हमने शुरू से ही दुनियां को कभी युद्ध नहीं दिया, बल्कि सदा शान्ति और मानव कल्याण की बात की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. कृष्णचन्द्र सिन्हा, कुलपति ( नालन्दा खुला विश्वविद्यालय, नालन्दा ) ने की। धनयवाद ज्ञापन डॉ. प्रदीप कुमार दास, अध्यक्ष, धर्म संस्कृति संगम ने दिया। मंच का संचालन प्रो. रणवीर नन्दन ने किया। इस अवसर पर मेरठ, मुरादाबाद, अमरोहा, गाजियाबाद, बिजनौर, दिल्ली आदि शहरों से धर्म संस्कृति संगम के सदस्य गण तथा नालन्दा खुला विश्वविद्यालय के अन्य शिक्षक कर्मी, कर्मचारी तथा छात्र -छात्राएं सैकड़ों की संख्या में उपस्थित थे।