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Faculty of Architecture and Planning : कार्यशाला में लोक कलाओं के विविध तकनीकी और माध्यमों से परिचित हुए लोग, हो रही आयोजन की सराहना

  • तीन दिवसीय अखिल भारतीय लोक व जनजातीय कला शिविर के दूसरे दिन सैकड़ों की संख्या में उपस्थित हुए कलाप्रेमी व छात्र।
  •  शिविर समापन पर लोककलाओं का होगा मंच पर प्रदर्शन।

लखनऊ, 3 मई 2024 campussamachar.com, , वास्तुकला एवं योजना संकाय के दोशी भवन के प्रदर्शनी कक्ष में चल रहे अखिल भारतीय लोक व जनजातीय कला शिविर का दूसरा दिन सैकड़ों की संख्या में आये छात्र, कलाप्रेमी, कलाकार, वास्तुविद लोगों के लिए बेहद आकर्षण का केन्द्र बना रहा क्योंकि यहाँ शिविर में उपस्थित देश के चार प्रदेशों के ग्यारह कलाकार के अपने-अपने माध्यम में विशेष मर्मज्ञ है। शिविर में हो रहे विभिन्न कला में प्रयोग होने वाले माध्यम में मुख्य रूप से सूती कपड़ा,काग़ज़,बांस की खपच्ची,लड़की के पात्र ,मिट्टी के खिलौने ,टेराकोटा प्लेट, शोला पेड़ों के पतले मोटे परत, और विशेष प्रकार के पेड़ की छाल का ,प्राकृतिक रंगोंप्रयोग किया गया है ।

प्रलेखनकर्ता भूपेंद्र अस्थाना व रत्नप्रिया कांत ने बताया कि उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों कोहबर कला को भी विशेष रूप से जानने और समझने के लिए उसके विशेषज्ञ कलाकार डॉ रामशब्द सिंह के चित्रों के आस पास लोग तांता लगाए रहे। अमूमन शादी विवाहों में बनने वाले इस हजारों वर्ष की कला को लोग बहुत कम जानते हैं। कारण कि इस कला का बहुत प्रचार प्रसार नहीं किया गया जिससे यह कला अन्य प्रदेशों के कला के अपेक्षा अधिक लोगों के बीच पहुँच नहीं पाई। 11 विभिन्न कलाओं में असम माजुली मास्क जिसने बांस की खपच्ची के फ्रेम बनाकर उसपे गाय गोबर और मिट्टी का लेप लगाकर उसको तैयार करते है और फिर अंत में ऐक्रेलिक कलर का प्रयोग करके उसको रंगीन और आकर्षक बनाते हैं। असम की ही पांडुलिपि चित्रकला जिसको एक विशेष प्रकार की पेड़ की छाल को तैयार करके फिर उसके अपर प्राकृतिक रंगों का प्रयोग केरके चित्रकारी की जाती है ।


lucknow Art News today : इसी शृंखला में असम के धुबरी की शोला पीठ चित्रकला है। जिसने शोला नामक पेड़ की जड़ के अंदर से उसकी खाल को निकाल कर उसका प्रयोग करके डेकोरेटिव मास्क और पेंटिंग बनायी जाती है। यहीं पर राजस्थान की फड़ चित्रकला है जिसमें कलाकार ने हनुमान चालीसा पे आधारित पेंटिंग प्राकृतिक रंगों के प्रयोग से बनायी है। बंगाल से आये पट्चित्र कलाकार जिन्होंने ३० फिट लंबे कपड़े पर पूरी रामायण का चित्रण किया है जो की बहुत ही आकर्षक है । बंगाल की ही एक और कला है जिसमें मिट्टी के विभिन्न खिलौनों को कोयले में गरम करके लाख के माध्यम से उसको रंगने और सजाने का काम किया है । इसी में मांडना कला जो की राजस्थान की एक अद्भुत कला है जिसको 75 वर्षीय श्रीमती विद्या देवी जी काग़ज़ पर लाल और सफ़ेद दो रंगों के प्रयोग से बनाती है जिसमें वो विभिन्न उत्सवों पर आधारित माँडना बनाती है। राजस्थान की पिछवाई कला के कलाकार दिनेश सोनी है जो अपनी कला में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करते है । पश्चिम बंगाल से आये एक कलाकार जो आम की लकड़ी से बने माने (मेजरमेंट के लिये प्रयोग किया जाने वाला पात्र)पर पीतल के पत्तों से अलग -अलग आकार बनाकर उन आकारों से उस माने को सजाते है इस कला को शेरपाई कहते है । इसी शृंखला में असम सिलचर की शोरा कला जिसमें टेराकोटा प्लेट पे विभिन्न रंगों से आकृतियाँ बनाई जाती है। इस पेंटिंग का प्रयोग मुख्य रूप से लक्ष्मी पूजा के अवसर पर होता है। और अंत में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आये एक कलाकार जो कोहबर कला के माध्यम से हमारी संस्कृति को दर्शाते है । इन सभी कलाकारों की विषय वस्तु मुख्यता हमारी पौराणिक कथाओं पर आधारित है ।


Faculty of Architecture and Planning, News  : शिविर के को ओर्डिनेटर धीरज यादव ने बताया कि लोककला उत्सव अखिल भारतीय लोक व जनजातीय कला शिविर  के समापन संध्या पर लोककलाओं का मंच प्रदर्शन ( विशेष मजुली मास्क व पटचित्र) कलाकार : खगेन गोस्वामी (असम) और सेरामुद्दीन चित्रकार (पश्चिम बंगाल) मुख्य अतिथि श्री अनिल रस्तोगी वरिष्ठ रंगकर्मी व फ़िल्म अभिनेता श्री संदीप यादव रंगकर्मी व फ़िल्म अभिनेता होंगे। यह मंचन स्थान – ओपन एयर थियेटर, वास्तुकला एवं योजना संकाय, डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय, टैगोर मार्ग (नदवा रोड) परिसर मे किया जाएगा।

 

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