नवरात्रि के शुभ दिनों में हम सब दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। वास्तव में पूजा करते समय हमें धार्मिक कार्यों के प्रति तन,मन मस्तिष्क से अनुभूति भी होनी चाहिए। केवल दिखावा मात्र से हमेशा बचना चाहिए और जीवन के हर क्षेत्र में ऐसा ही करना चाहिए। मां दुर्गा के कार्यों से ही समाज को ऐसी शिक्षा मिलती है.
- जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप है।
- कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप है।
- विवाह से पूर्व तक चन्द्रमा के समान निर्मल होने से वह “चन्द्रघण्टा” समान है।
- नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्माण्डा” स्वरूप में है।
- सन्तान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है।
- संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” रूप है।
- अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” जैसी है।
- संसार कुटुम्ब ही उसके लिए संसार हैं, का उपकार करने से “महागौरी” हो जाती है।
- धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी सन्तान को सिद्धि समस्त सुख सम्पदा का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” हो जाती है।
प्रस्तुति : पंडित ए॰एन॰ चौबे, सिद्धि विनायक मंदिर छत्तीसगढ़