पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतं च धनम् ।
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ।।
✍ पुस्तकें तो हम बहुत खरीद लेते हैं परंतु समयाभाव का बहाना लेकर अध्ययन नहीं करते हैं ।
✍ पुस्तकों में मौजूद ज्ञान का अध्ययन और कार्यों में उपयोग न हो तो बेकार है ।
✍ इसी प्रकार जीवन मे धन तो बहुत अर्जित करते हैं, परन्तु स्वयम उपयोग नहीं करते ।
✍ संकट एवं भावी पीढ़ी के लिए एकत्र करते रहने के कारण स्वयं को धन के उपभोग से वंचित किये रहते हैं ।
✍ बिना मेहनत एवम पैतृक धन का ज्यादातर दुरुपयोग ही देखने को मिलता है ।
आज तिथि ५१२५/ १२-०१-(०२-०३)/ ०३ युगाब्द ५१२५/ फाल्गुन शुक्ल पक्ष, (द्वितीया-तृतीया), मंगलवार “रामकृष्ण परमहंस जयंती, विश्व अग्निहोत्र दिवस” की पावन मंगल बेला में, संचय नहीं- उपयोग के संकल्प के साथ, नित्य की भांति, आपको मेरा “राम-राम”।