- एक दिन ऐसा होएगा, कोइ कहू का नाहि ।
घर की नारी को कहै, तन की नारी (नाड़ी) नाहि ।।
✍ इस संसार मे हम अकेले आये थे और अकेले ही चले जाना है ।
✍ शरीर से प्राण निकलते ही इस संसार में हमारा कोई नहीं रह जाता है ।
✍ अपना तथाकथित घर, पद, प्रतिष्ठा,अपने पति/पत्नी का क्या-शरीर की नाड़ी/नस भी नहीं रहेगी और सब कुछ छोड़कर चले जाना होगा ।
✍ यदि इन बातों का सोते-जागते स्मरण करते रहें तो हमारा अहम(घमंड) रूपी सबसे बड़ा शत्रु कभी हावी नहीं हो पायेगा ।
✍ और जीवन को जीने का वास्तविक आनन्द ले पाएंगे ।
आज तिथि ५१२५/ ११-०२-०८/ ०२ युगाब्द ५१२५/ माघ कृष्ण पक्ष, अष्टमी, सोमवार “सीताष्टमी” की पावन मंगल बेला में, नाशवान शरीर की अंतगति को, हमेशा ध्यान में रखने का संकल्प लेते हुए, नित्य की भाँति आपको मेरा “राम-राम”।