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दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान….

दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान ।

तुलसी दया न छोडि़ए ,जब लग घट में प्राण ।।

  • अपने से छोटों, गरीबों, असहायों, कमजोर पर दया आनी ही चाहिए ।
  • इसके उलट ज्यादातर मनुष्य इन्ही पर गुस्सा कर अपनी भड़ास निकाल लेता है ।
  • दया ही धर्म (कर्तव्य) का मूल है, और ईश्वर को पसंद है ।
  • इसके विपरीत अहंकार (मैं ) समस्त पापों की (मूल)जड़ होता है ।
  • अहंकारी व्यक्ति को उसके स्वयं के अलावा कोई भी पसंद नहीं करता है ।
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