- बिनॉय पॉल की कला असम में बराक घाटी की मूर्ति निर्माण के शिल्प और संस्कृति में रची-बसी है।
- लगभग दस वर्षों से लोक व समकालीन कला में सक्रियता से दखल दे रहे हैं। इनकी कृतियों की प्रदर्शनी देश व विदेशों में बड़ी संख्या में लगाई जा चुकीं है।
- एकल प्रदर्शनी शीर्षक “द टेल ऑफ़ मैजिकल बिंग्स” का उद्घाटन मुकेश कुमार मेश्राम प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार ने किया।
लखनऊ,18 अप्रैल . campussamachar.com, मंगलवार को लखनऊ शहर के माल एवेन्यू में स्थित होटल लेबुआ के सराका आर्ट गैलरी में असम के युवा मूर्तिकार डॉ बिनॉय पॉल के पेपर पल्प और बांस से तैयार 20 लघु मूर्तिशिल्पो की एकल प्रदर्शनी शीर्षक “द टेल ऑफ़ मैजिकल बिंग्स” लगायी गयी। जिसका उद्घाटन मुकेश कुमार मेश्राम ( प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार ) ने किया।
#मूर्तिकार डॉ बिनॉय पॉल : इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर वंदना सहगल और कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना हैं। क्यूरेटर वंदना सहगल, डॉ पॉल के कलाकृतियों पर बताया कि असम के कलाकार बिनॉय पॉल मिश्रित मीडिया में काम करते हैं। इनकी कृतियां पारंपरिक लोक कलाओं, लोक गीतों, तकनीक और सांस्कृतिक लोकाचार पर आधारित है जो उनके रचनात्मकता का मुख्य उद्देश्य है। यह कागज पर ऐक्रेलिक या लघु मूर्तियां हो सकती हैं जो वह पेपर पल्प के साथ बनाते हैं। पौराणिक कहानियाँ मूल विचार हैं जो वह बनाते हैं। उसमें प्रतिध्वनित भी है। बिनॉय के लिए, कला एक विशिष्ट व्यवसाय है, जहाँ उन्होंने कला को एक रचनात्मक माध्यम में जीवन के प्रतिनिधित्व के रूप में देखने और निर्माण करने में परंपरा को एक तामझाम के रूप में लिया है।
lucknow news : डॉ बिनॉय पॉल रचनात्मक डिजाइनों में एक सुसंगत आकार के रूप में जीवित प्रगतिशील आवेग को कालातीत सार्वभौमिक के लिए व्यक्त और संचार करते हैं। भारतीय लोक कला सदियों पुरानी है। इन्होने उस लोक को रूपांतरित और विकसित किया है जो हमेशा समृद्ध भारतीय विरासत का एक अभिन्न अंग रहा है और आगे भी रहेगा। जनजातीय परंपरा अक्सर मेलों, त्योहारों, देवी-देवताओं के चित्रण में जीवन शैली और परंपराओं को प्रतिबिंबित करती है। वह उन्हें दैनिक ग्रामीण जीवन, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, पक्षियों, जानवरों और प्रकृति और पृथ्वी के तत्वों के चित्रण के साथ ओवरलैप करता है।
lucknow art news : अति प्राचीन काल से, बराक घाटी के लोग पारंपरिक रूप से शिल्पकार रहे हैं और उन्होंने शिल्प के तत्व को आगे बढ़ाने के लिए मिश्रित मीडिया को चुना है। वह ऐसी दृश्य भाषाओं के संचार में निपुण है क्योंकि वह सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और विषयों, प्रतीकों, मिथकों और शायद एक नैतिक पाठ के साथ बहुत हद तक परिचित है। मिट्टी से बनाई गई गोलाकार डिस्क और फिर आकृतियों या रूपांकनों के साथ चित्रित की गई, जिसे सारा के नाम से जाना जाता है। इन सरसों का उपयोग विशुद्ध रूप से धार्मिक कारण से किया गया था। उन पर किए गए सबसे लोकप्रिय चित्र देवी लक्ष्मी, दुर्गा और राधा कृष्ण थे और दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा और जन्माष्टमी के दौरान इस्तेमाल किए गए थे। वर्ण पटचित्रों की शैली के समान थे। चित्रकला के इस रूप में रेखा ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
lucknow education news : बिनॉय पॉल की कला असम में बराक घाटी की मूर्ति निर्माण के शिल्प और संस्कृति में रची-बसी है। उनका कला कार्य उनके रूप, भौतिकता, रंग और तकनीक में भारत के सामान्य सांस्कृतिक विषयों से प्रेरित है। उनकी पेपर मशे तकनीक परंपरा से प्रेरित है और रंग, अलंकरण, कपड़े, विशेषताओं और विषय के विवरण के कारण अलग है। ये लगभग लघुकृत मूर्तियाँ अपनी समग्रता में बहुत समकालीन हैं क्योंकि वे नाजुक, सारगर्भित हैं और उनमें हास्य की भावना है, जो उन्हें बहुत व्यक्तिगत बनाती है।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना ( bhupendra k. asthana Fine Art Professional ) ने बताया कि डॉ बिनॉय पॉल बराक घाटी के सिल्चर असम के रहने वाले हैं। इन्होने मूर्तिकला में कला की शिक्षा एवं शोध कार्य असम विश्वविद्यालय से किया है। लगभग दस वर्षों से लोक व समकालीन कला में सक्रियता से दखल दे रहे हैं। इनकी कृतियों की प्रदर्शनी देश व विदेशों में बड़ी संख्या में लगाई जा चुकीं है। इन्हे ललित कला में राष्ट्रीय छात्रवृत्ति संस्कृति मंत्रालय एवं नेशनल रेजीडेन्सी, एवं अनेकों सम्मान एवं पुरस्कार भी मिल चुके हैं। इनके कृतियों का ज्यातर संग्रह विदेशों एवं भारत के अनेकों प्रांतो में निजी संग्रह में संग्रहित है। खोज आर्टिस्ट सप्पोर्ट ग्रांट और हुंडई आर्ट फॉर होप ग्रांट हुंडई मोटर इंडिया फाउंडेशन द्वारा भी मिल चुका है। आजभी निरंतर अपनी कला के माध्यम से कला जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान बना रहे हैं। यह प्रदर्शनी कला प्रेमियों के लिए 7 मई 2023 तक प्रातः 11 बजे से सायं 6 बजे तक सराका आर्ट गैलरी में लगी रहेगी।