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Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad : विवेकानंद जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित हुई संगोष्ठी, मुख्य अतिथि रहे प्राचार्य फूल सिंह चौहान

सीतापुर , 11 जनवरी,campussamachar.com,  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सीतापुर (Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad)  के अंतर्गत बिसवां जिले के कुंवर भूषण सिंह इंटर कॉलेज में युवाओं के प्रेरणास्रोत पूज्य स्वामी विवेकानंद के जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित संगोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में प्रवासी कार्यकर्ता के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद प्रदेश मीडिया संयोजक,अवध प्रांत विकास तिवारी एवं मुख्य अतिथि के रूप में कुंवर भूषण सिंह इंटर कॉलेज के प्राचार्य फूल सिंह चौहान ने एक साथ ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद के चित्र के समक्ष पुष्पर्चान कर आयोजित संगोष्ठी का शुभारंभ किया ।

आयोजित संगोष्ठी में युवाओं को संबोधित करते हुए विकास तिवारी ने स्वामी विवेकानंद ध्येय वाक्यों को युवाओं के समक्ष उच्चारित करते हुए कहा कि उठो जागो और तबतक न रुको जबतक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए, मीडिया संयोजक ने आगे अपने उद्बोधन में कहा कि भारत की आबादी में लगभग 65 प्रतिशत योगदान युवाओं का हैजरूरी नहीं की आज का युवा भगत सिंह की तरह फांसी के फंदे पर ही चढ़े चांद और मंगल पर भी जा सकता है।  यह भी जरूरी नहीं कि देश की बेटियां रानी लक्ष्मी बाई की तरह तलवार लेकर घोड़े पर दौड़े ,हेमदास की तरह मेडल लेकर ट्रैक पर भी दौड़ सकती है।

आगे उन्होंने विवेकानंद के प्रति कुछ महापुरुषों के वक्तव्य को प्रगट करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद इस नाम को।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर कहते हैं यदि भारत को जानना है तो स्वामी विवेकानंद को पढ़ो।

महात्मा गांधी कहते हैं – स्वामी विवेकानंद को पढ़ने के बाद भारत के प्रति मेरी भक्ति एक हजार गुना बढ़ गई।

सुभाष चंद्र बोस कहते हैं – यदि स्वामी विवेकानंद जीवित होते तो आज मैं उनके चरणों में बैठा होता।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि फूल सिंह चौहान ने स्वामी के बचपन के विषय में युवाओं को बताते हुए कहा कि विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ. उनका झुकाव बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर था. वो अपने दोस्तों से कम उम्र में ही कहते थे कि मैं संन्यासी बनूंगा. शायद उन्हें किसी हस्तरेखा विशेषज्ञ ने भी बचपन में इस बारे में बता दिया था. उनके बचपन का घर का नाम वीरेश्वर रखा गया था. औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था।नरेंद्र तब आठ साल के थे।

Swami Vivekananda news,  : वह घर के पास ही एक बगीचे में साथियों के साथ खेलने जाते थे और वहां चंपा की डाली को पकड़कर झूलते थे, कभी उस पर चढ़ने की कोशिश भी करते थे। एक दिन एक बुजुर्ग ने बच्चों को समझाया, ‘देखो, चंपा के इस पेड़ पर भूत रहता है। वह तुम सबकी गर्दन मरोड़ देगा।’ चंपा की डालियां नाजुक होती हैं, शायद इसलिए या फिर बच्चे बगीचे में न खेलें, इस ख्याल से उन्होंने डराते हुए ऐसा कहा था।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से विश्व के जिला संगठन मंत्री अभिषेक ओझा जिला संयोजक, वैष्णवी सिंह, त्रिपांशु मिश्रा सहित इंटर कॉलेज की अध्यापक तथा सैकड़ों छात्र व छात्राएं उपस्थित रही।

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