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Faculty of Architecture and Planning : विश्व में सबसे अधिक लोक व जनजातीय कलाऐं भारत में – जय कृष्ण अग्रवाल

  •  तीन दिवसीय अखिल भारतीय लोक व जनजातीय कला शिविर का हुआ भव्य शुभारम्भ।

लखनऊ, 2 मई , campussamachar.com,  लोक और जनजातीय कलाऐं जमीन से जुड़ी कलाऐं हैं और किसी भी राष्ट्र की पहचान ही नहीं अभिमान भी होती हैं। भारत में भौगोलिक विविधताएं लोककथाओं के असीम विस्तार से हमें सम्पन्न करती हैं किन्तु आधुनिकीकरण से बदलती जीवन शैली और प्रकृति से बढ़ती दूरियां हमारी लोक कलाओं के उन्नयन में बाधक हो रही हैं। संकाय के डीन डा. वंदना सहगल और उनकी कलाकारों की टीम द्वारा स्थानीय कॉलेज आफ आर्किटेक्चर में आयोजित यह तीन दिवसीय कार्यशाला लोक और जनजातीय कलाकारों को बढावा देने के साथ-साथ आवश्यक सामाजिक चेतना जाग्रत करने में सहायक होगी। यह वक्तव्य गुरुवार को वास्तुकला एवं योजना संकाय शुरू हुए तीन दिवसीय लोक व जनजातीय कला शिविर के उदघाटन अवसर पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल ने रखी। उन्होने आगे कहा कि विश्व में सबसे अधिक लोक व जनजातीय कलाएं सिर्फ भारत में ही रही हैं,इन कलाओं को संरक्षण की सबसे अधिक जरूरत है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में वास्तुकला संकाय की विभागाध्यक्ष प्रो रितु गुलाटी ने कहा की हम जब विदेशों में घूमने जाते हैं तो वहाँ उनकी कला व कलाकारों के संरक्षण का प्रयास देखते हैं जिसमें उन कलाओं के उद्गम एवं निर्माण स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर संरक्षित कर दिये गए हैं। हमे भी ऐसा ही सार्थक प्रयास करना चाहिए। आगे कहा कि इन लोक व आदिवासी कला विधाओं के कलाकारों को पुरस्कार के अलावा मूलभूत सुविधाएं प्रदान किया जाना चाहिए । हम सबको इनके प्रोत्साहन के लिए एक एक प्रयास करना होगा। यह कला शिविर इसी प्रयास का एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।

शिविर के प्रलेखनकर्ता भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने कहा कि भारत एक विविध कला – संस्‍कृति वाला देश है। आम इंसान के द्वारा बिना किसी ताम-झाम व प्रदर्शन से जब स्वाभाविक कलाकारी को चित्र, संगीत, नृत्य आदि के रूप में पेश किया जाता है, तो वह लोककला कहलाती हैं। भारत की अनेक जातियों व जनजातियों में पीढी दर पीढी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोककला कहते हैं। हमेशा से ही भारत की कलाएं और हस्‍तशिल्‍प इसकी सांस्‍कृतिक और परम्‍परागत प्रभावशीलता को अभिव्‍यक्‍त करने का माध्‍यम बने रहे हैं। देश भर में फैले सभी राज्‍य क्षेत्रों की अपनी विशेष सांस्‍कृतिक और पारम्‍परिक पहचान है, जो वहां प्रचलित कला के भिन्‍न-भिन्‍न रूपों में दिखाई देती है।

lucknow News in hindi : भारत के हर प्रदेश में कला की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्‍परागत कला का एक अन्‍य रूप है जो अलग-अलग जनजातियों और देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की लोक और जनजातीय कलाएं बहुत ही पारम्‍परिक और साधारण होने पर भी इतनी सजीव और प्रभावशाली हैं कि उनसे देश की समृ‍द्ध विरासत का अनुमान स्‍वत: हो जाता है। हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी पारंपरिक कला या कला धीरे-धीरे खत्म हो रही है क्योंकि आधुनिक समय में नए लोकाचार और नई तकनीक के साथ संदर्भ लुप्त हो रहे हैं।

lucknow News today : यह कला जीवन का एक तरीका है। चूंकि जीवन का तरीका बदल रहा है, इसलिए इन रचनाओं की आवश्यकता भी बढ़ रही है। यह शिविर लुप्तप्राय कला, शिल्प और उनके कलाकारों को सामने लाने का एक प्रयास है। इस शिविर में वेस्ट बंगाल से आए सेरपाई विधा के इकलौते कलाकार भोलानाथ कर्मकार ने बताया कि मे वर्तमान में हम एक ही परिवार हैं जो इस विधा में काम कर रहे हैं। शिविर में मुख्य आकर्षक कलाकारों के तकनीकी पक्ष, प्राकृतिक रंग, प्रकृतिक सामाग्री से बनाई गयी सभी कलाकृतियाँ हैं।


lucknow News : शिविर के कोऑर्डिनेटर धीरज यादव (उत्तर प्रदेश)और बिनोय पॉल (असम) ने बताया कि कलाकारों व साहित्यकारों की नगरी लखनऊ के वास्तुकला एवं योजना संकाय, टैगोर मार्ग नदवा रोड स्थित परिसर के दोशी भवन के प्रदर्शनी कक्ष में तीन दिवसीय अखिल भारतीय लोक व जनजातीय कला शिविर लोककला उत्सव का भव्य शुभारंभ दिनांक 2 मई 2024 को किया गया। इस शिविर के क्यूरेटर डॉ वंदना सहगल हैं।

Faculty of Architecture and Planning news: विश्व में सबसे अधिक लोक व जनजातीय कलाऐं भारत में – जय कृष्ण अग्रवालइस शिविर में देश के चार प्रदेशों (नार्थईस्ट, वेस्ट बंगाल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) से कई सुप्रसिद्ध लोक एवं जनजातीय कला सहारनपुर उत्तर प्रदेश से राम शब्द सिंह- कोहबर कला, दुलाल मालाकार- शोला पीठ- असम, खगेन गोस्वामी – मझूली मास्क- असम, दिनेश सोनी – पिछवाई कला – राजस्थान, दिगंता हजारिका – साँची पट – असम, बृंदाबन चंदा – लाख डौल – वेस्ट बंगाल, भोलानाथ कर्मकार – शेरपाई – वेस्ट बंगाल, सेरामुद्दीन चित्रकार – पट्चित्र – वेस्ट बंगाल, गांधी पॉल – शोरा चित्र – असम, विद्या देवी – मांडना कला – राजस्थान, अभिषेक जोशी – फड़ पेंटिंग – राजस्थान) के विविध परंपराओं और विधाओं के ग्यारह कलाकार सम्मिलित हुए हैं। यह सभी कलाकार 4 मई तक अपने अपने विधा मे काम करेंगे। इस अवसर पर माधव (बंटूस फर्नीचर), गिरीश पाण्डेय, मीनाक्षी खेमका (सहायक निदेशक, राज्य संग्रहालय), रत्नप्रिया कान्त, शुभा द्विवेदी सहित बड़ी संख्या में वास्तुकला संकाय और कला एवं शिल्प महाविद्यालय के छात्र,अध्यापक और कलाकार और कला प्रेमी उपस्थित रहे।

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