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Bilaspur News : दैनंदिनी 5126 की अग्रिम प्रति GGU और Atal Bihari Vajpayee Vishwavidyalaya के कुलपतियों को समर्पित – ललित अग्रवाल

  • गुरुघासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक कुमार चक्रवाल ने बताया कि गीताप्रेस गोरखपुर के निकलने वाली गीता दैनन्दिनी भी जनवरी से दिसंबर अवधि की होती हैं।
  • आग्रहव्रति ललित अग्रवाल ने बताया कि भारतीय काल गणना पूर्णतयाः वैज्ञानिक हैं। 432000 वर्षों में युग परिवर्तित होता हैं। उस दिन सभी ग्रह नक्षत्र एक लाईन में आते हैं।

बिलासपुर , 24 फरवरी .  प्रख्यात हिंदुत्ववादी शोधकर्ता व चितंक दिल्ली निवासी  सुनील अग्रवाल द्वारा संपादित एवं हिंदू दैनंदिनी न्यास बिलासपुर द्वारा लगातार चौथी बार प्रकाशित दैनंदिनी 5126 की अग्रिम प्रति माघी पूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरुघासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, अटल बिहारी बाजपेई बिलासपुर विश्वविद्यालय, पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपतियों, कुलसचिवों जिसे जाने माने शिक्षाविदों को प्रदान की गई।

Bilaspur news today :  सुनील अग्रवाल ने बताया कि वैश्विक संस्कृति के उत्थान जा मार्ग भारतीय विज्ञान के माध्यम से ही होकर जाएगा। भारतीय विज्ञान के दो बड़े आधार हैं – भारतीय ज्योतिष और आयुर्वेद। इन दोनों के विस्मयकारी प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। दुर्भाग्य से दासता के कालखंड में हमारे नेता अपने गौरव, अपने मानबिंदुओं को भुलाकर विदेशियों के अशुद्ध ज्ञान का अनुसरण करने लगे। स्वाधीनता प्राप्ति तक आमजन नेतृत्व के इस भ्रम में सहभागी नहीं थे। स्वतंत्र भारत मे अपनी संस्कृति व संस्कार के पतन का मूल कारण भारतीयता विहीन हाथों में देश के शासन का जाना था। इसी क्रम में भारत का शासन अंग्रेजी कैलेंडर को मानने वाला बना। औपचारिकता के लिए महान वैज्ञानिक मेघनाथ साहा के नेतृत्व में पंचाग समिति का गठन किया गया। उन्होंने भले ही सौर अयन आधारित शक संवत काल गणना को मान्यता दी, लेकिन अंगेजी कैलेंडर के प्रचलन से हमारी पीढ़ियां पंचाग के ज्ञान से वंचित रह गई।

GGU  News today : गुरुघासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक कुमार चक्रवाल  (  Professor Alok Kumar Chakrawal Vice Chancellor of Guru Ghasidas Vishwavidyalaya -Central University,)  ने बताया कि गीताप्रेस गोरखपुर के निकलने वाली गीता दैनन्दिनी भी जनवरी से दिसंबर अवधि की होती हैं। जबकि हिंदू दैनंदिनी न्यास द्वारा विगत चार वर्षो से लगातार नववर्ष पर प्रकाशित की जाने वाली यह दैनंदिनी एक अमूल्य धरोहर हैं।

chhattisgarh news today : आग्रहव्रति ललित अग्रवाल ने बताया कि भारतीय काल गणना पूर्णतयाः वैज्ञानिक हैं। 432000 वर्षों में युग परिवर्तित होता हैं। उस दिन सभी ग्रह नक्षत्र एक लाईन में आते हैं। आज से 3102 वर्ष पूर्व 20 फरवरी को एक खगोलीय घटना घटी थी। उस दिन से कलयुग का प्रारंम्भ हुआ है। संसार की सबसे पुरानी काल गणना पद्धति भारतीय “युगाब्ध” माना जाता है जो लगभग 5126 वर्ष पुराना है । इसका संबंध महाभारत काल से है । यह संवत् युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तिथि से आरंभ हुआ था । इसका सत्यापन द्वारिका के किनारे समुद्र की पुरातत्व खुदाई में मिली विभिन्न सामग्री से होता है । अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने इस उपलब्घ सामग्री के समय लगभग पाँच हजार से पाँच हजार दो सौ वर्ष के बीच का माना गया है । संवत् आरंभ होने का दूसरा प्राचीन उल्लेख बेबीलोनिया से मिलता है ।

इस संवत् का इतिहास लगभग चार हजार वर्ष पुराना है । तब वहां नववर्ष का आरंभ बसंत ऋतु से होता था । यह तिथि लगभग एक मार्च के आसपास ठहरती है । ग्रेगोरियन कैलेण्डर लागू होने से पहले समूचे यूरोप में यही कैलेण्डर लागू था । इसलिये आज भी मार्च का महीना हिसाब-किताब का वर्षांत माना जाता है । जिन अंग्रेजों ने एक जनवरी से नववर्ष का आरंभ माना वे भी अपना हिसाब किताब मार्च माह से ही करते थे । तीसरा प्राचीन नववर्ष पारसी नौरोज है । इसका आरंभ लगभग तीन हजार वर्ष पहले हुआ था । पारसी नौरोज 19 अगस्त से आरंभ होता है । चौथा प्राचीन संवत् भारत का विक्रम संवत है जो महाराज विक्रमादित्य के राज्याभिषेक से आरंभ हुआ था । इसे 2080 वर्ष बीत गये । विक्रम संवत् के अतिरिक्त भारत में शक संवत् और वीर निर्वाण संवत् की भी मान्यता रही है । शक संवत् का संबंध भारत को शक आक्रमण से मुक्ति की स्मृति में आरंभ हुआ था तो वीर निर्वाण संवत् का संबंध भगवान महावीर स्वामी की निर्वाण तिथि से है । इसका आरंभ 7 अक्टूबर 528 ईसा पूर्व माना जाता है ।

पंचांग अर्थात पाँच अंग । भारतीय पंचांग में कुल पाँच आधार होते हैं। ये तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं । इन पाँच अंगों से ही भारतीय पंचांग में तिथि दिन की गणना होती है जबकि वर्ष और माह की जानकारी इन पाँच अंगों से अलग होती है । जबकि ग्रेगोरियन कैलेण्डर में केवल दो जानकारी होती है । तारीख और दिन की । माह और वर्ष भी । इस प्रकार पाँच हजार वर्ष पुरानी भारतीय कालगणना पद्धति “पंचांग” पश्चिम की आधुनिक कैलेण्डर पद्धति से अपेक्षाकृत अधिक उन्नत रही है । हिंदू दैनंदिनी न्यास द्वारा गत चार वर्षों से तिथि अंको में लिखने की नवीन विधि बनाई गई हैं।

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