क्यों खामोश है शिक्षकों के रहनुमा ?
लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (LUTA ) के चुनाव होने के बाद शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग अपने रहनुमाओं के दो बोल सुनने के लिए तरस रहा है। ऐसे शिक्षकों की राय है कि परिसर में तरह-तरह की शिक्षकों की समस्याएं सामने आ रही हैं लेकिन अपने नेता इन सारे मुद्दों पर मौन साध रखे हैं । इनमें एक बड़े नेता को मुखिया ने एक बड़ी कमेटी में जिम्मेदारी सौंप रखी है। ऐसे में पदाधिकारी की समस्या यह है कि वह खुलकर अपनी बात भी नहीं कह सकते हैं , तो अन्य पदाधिकारी अपने नेता की देखादेखी चुप है । कुल मिलाकर शिक्षकों के रहनुमाओं की छवि कुछ अच्छी बनती नहीं दिख रही है, फिर भी नेताओं के खेमे से आवाज आ रही है कि जब स्मार्ट मुखिया से विश्वविद्यालय में अमन चैन है तो फिर काहे के लिए बवाल…
प्रिंसिपल बनकर बुरे फंसे प्रोफेसर साहब
लखनऊ शहर के एक बड़े डिग्री कॉलेज में नियमित प्रिंसिपल के रिटायर होते एक सीनियर शिक्षक की लॉटरी लग गई और काफी समय से किसी प्रशासनिक पद पर बैठने की ख्वाहिश थी पूरी हो गई । पहले से ही शिक्षा के मामले में सकारात्मक सोच रखने वाले प्रोफेसर साहब जबसे प्रिंसिपल बने हैं तब से अपने कॉलेज में बहुत कुछ करना चाहते हैं लेकिन पुलिस स्टाइल वाला मैनेजमेंट मिलने के कारण उनके ऐसे हाथ पांव बांध दिए गए हैं विचार कर भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं। ऐसे में विवश होकर सिर्फ और सिर्फ रूटीन काम ही करने में व्यस्त रहते हैं। वैसे भी उनको हमेशा अपनी ईमानदार छवि का ख्याल रहता है, लिएकिन मैनेजमेंट को कौन साझाए कि प्रोफेसर साहब को कुछ तो करने दो भैया वरना प्रिंसिपल पद भी आउटसोर्सिंग से बाहर लो न …
मुखिया के खेमे की बैचेनी ख़त्म
छात्रसंघ चुनाव को लेकर विश्वविद्यालय के छात्र नेता जब तब आंदोलन करते ही रहते हैं। अब विश्वविद्यालय में छात्र आंदोलन के लिए मुद्दों की तलाश करना उनके लिए छात्रों के बीच माहौल बनाना और फिर विश्वास दिला करके छात्रों को साथ लेना एक मुश्किल काम तो है ही। ऐसे में छात्र नेता सीधे अपने हित छात्रसंघ चुनाव की मांग करने लगे हैं। कई छात्र संगठनों ने समर्थन भी देकर उत्साह बढ़ाया और आंदोलन शुरू हो गया पहले तो विश्वविद्यालय प्रशासन इनकी अनदेखी करती रही और पुलिस का भी इस्तेमाल किया गया लेकिन इस मामले में ट्विस्ट तब आया जब डिग्री कॉलेज शिक्षक संघ (LUACTA) के पदाधिकारी भी लेटर बम छोड़ दिए इसमें राज्यपाल को भेजकर यह निवेदन भी किया कि वह अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल कर विश्वविद्यालय में चल रहे छात्र आंदोलन का संज्ञान लें । इस पत्र के बाद तो विश्वविद्यालय के मुखिया खेमे में हलचल मच गई । माहौल गरमाने के लिए छात्रसंघ के कुछ पुराने नेता भी परिसर पहुंचे। मुखिया के सलाहकारों की बात मान कर आंदोलन खत्म। कुलपति का भी टेंशन खत्म।
टेंशन में गाइड प्रेमी टीचर्स
शहर के एक बड़े डिग्री कॉलेज में अब शिक्षकों की उपस्थिति बायोमेट्रिक सिस्टम से लगाई जाएगी कॉलेज प्रशासन ने इसके लिए जरूरी व्यवस्थाएं करके शिक्षकों के बीच घोषणा भी कर दी है। यह फैसला कुछ शिक्षकों के लिए सिर दर्द भी बन रहा है – खासकर गाइड प्रेमी शिक्षकों के लिए तो यह किसी बड़े दर्द से काम नहीं है। इन शिक्षकों की चर्चा लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध उन डिग्री कॉलेज तक में होने लगी है , जहां के विद्यार्थी पढ़ने लिखने में कम और 60 तरीके से एग्जाम पास करने की कोशिश करते हैं और कई बार अच्छी सफलता भी मिल जाती है । हालांकि कालेज प्रशासन का दावा है कि वह ऐसा करने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में पहला कॉलेज है लेकिन अब देखना यह है कि कॉलेज में यह व्यवस्था कब तक बनी रहती है ?
शिक्षाभवन में रिश्वतख़ोरी
राजधानी के शिक्षा भवन में DIOS, DDR से लेकर JDR तक के दफ्तर हैं जहां से शिक्षकों के वेतन भुगतान, सेवा सुरक्षा सहित विद्यालयों में पढ़ाई लिखाई जैसे जरूरी कामों की मॉनिटरिंग करनी होती है। विभाग इन सब कार्यों पर तवज्जो देने की बजाय अधिकारी और कुछ क्लर्क मिलकर शिक्षकों को परेशान करने के नए-नए तरीके तलाशते रहते हैं। कुछ ऐसा ही गैर जिलों से ट्रांसफर होकर आए 100 शिक्षकों के साथ के वेतन भुगतान में भी हो रहा है। शिक्षा भवन के कुछ रिश्वतखोर लोग शिक्षकों को वेतन भुगतान करने में लगातार देरी कर रहे हैं। माध्यमिक शिक्षक संघ के नेताओं ने जब यह मामला उठाया तो रिश्वतखोर और बौखला गए लेकिन शिक्षक नेता भी बिना रिश्वत दिए वेतन भुगतान पर लड़ गए और उन्होंने शिक्षा भवन में तंबू गाड़ दिया । दोनों तरफ से खेल चलता रहा अब स्थिति यह है कुछ शिक्षकों का भुगतान हो गया है और कुछ का रुका है। ऐसे में शिक्षा भवन में चर्चा यही है बिना रिश्वतखोरी के कुछ भुगता होने से शिक्षक नेताओं का मान रह गया और अब कुछ शुल्क लेकर शेष शिक्षकों का वेतन भुगतान कर रिश्वतखोर अपना भला करेंगे ?
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