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होली का त्योहार : देश में रंगों की बौछार, भांग का गुमार और हंसी-ठिठोली का मौसम, अपने अपने ढंग से मनाते हैं यह त्योहार

ललित अग्रवाल
  • इस लेख में देश के विभिन्न हिस्सों में होली के पर्व को मनाए जाने का बहुत ही रोचक ढंग से वर्णन किया गया है। यह  त्योहार पूरे देश  में अलग – अलग नामों से मनाया जाता है  ।

रंग बरसे भीगे चुनरवाली… रंग बरसे...।’ रंगों की बौछार, भांग का गुमार और हंसी-ठिठोली का मौसम लाने वाला पर्व है होली। इसके रंगीले मिजाज और उत्साह की बात ही कुछ और है। मौज-मस्ती और प्रेम-सौहार्द से सराबोर यह त्योहार अपने भीतर परंपराओं के विभिन्न रंगों को समेटे हुए है, जो विभिन्न स्थानों में अलग-अलग रूपों में सजे-धजे नजर आते हैं। विभिन्नता में एकता वाले इस देश में अलग-अलग क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने के अलग-अलग अंदाज हैं। मगर इन विविधताओं के बावजूद हर परंपरा में एक समानता अवश्य है, यह है प्रेम और उत्साह जो लोगों को आज भी सब कुछ भूल कर हर्ष और उल्लास के रंग में रंग देते हैं। आइये विभिन्नता वाले देश मे विभिन्न होली उत्सवों की यात्रा पर चलते है –

#लट्ठमार_होली –
होली की बात हो और ब्रज का नाम ना आए, ऐसा तो हो ही नही सकता। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहां भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा (उत्तरप्रदेश) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।

इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगांव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस-हंस कर लाठियां खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।

महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था।

दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहां पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगांव में, वहां की गोपियां, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।

#हरियाणा_की_धुलेंडी –
भारतीय संस्‍कृति में रिश्‍तों और प्रकृति के बीच सामंजस्‍य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। यहां होली धुलेंडी के रूप में मनाते हैं और सूखी होली – गुलाल और अबीर से खेलते हैं। भाभियों को इस दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दें।

भाभियाँ देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है। शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी के लिए उपहार लाता है और भाभी उसे आशीर्वाद देती है। लेकिन उपहार और आशीर्वाद के बाद फिर शुरू हो जाता है देवर और भाभी के पवित्र रिश्‍ते की नोकझोंक और एक-दूसरे को सताए जाने का सिलसिला। इस दिन मटका फोड़ने का भी कार्यक्रम आयोजित होता है।

#बंगाल_का_वसन्तोत्सव –
गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने होली के ही दिन शान्ति निकेतन मे वसन्तोत्सव का आयोजन किया था, तब से आज तक इसे यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

#बंगाल_में_डोल_पूर्णिमा –
बंगाल में होली डोल पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दौरान रंगों के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्‍कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रंगार करते हैं। सुबह से ही नृत्‍य और संगीत का कार्यक्रम चलता है। घरों में मीठे पकवान और बनते हैं। इस पर्व को डोल जात्रा के नाम से भी जाना। इस मौके पर राधा-कृष्‍ण की प्रतिमा झूले में स्‍थापित की जाती है और महिलाएं बारी-बारी से इसे झुलाती हैं। शेष महिलाएं इसके चारों ओर नृत्‍य करती हैं। पूरे उत्‍सव के दौरान पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते रहते हैं और बदले में महिलाएं भी उन्‍हें रंग-गुलाल लगाती हैं।

#महाराष्ट्र_की_रंगपंचमी और #गोआ_कोंकण_का_शिमगी –
महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों में इस त्योहार को रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच-गाना और मस्ती होता है। यह मौसम शादी तय करने के लिए ठीक माना जाता है क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक-दूसरे के घरों को मिलने जाते हैं और काफी समय मस्ती में बीतता है। महाराष्‍ट्र में पूरनपोली नाम का मीठा स्‍वादिष्‍ट पकवान बनाया जाता है, वहीं गोआ में इस मौके पर मांसाहार और मिठाइयां बनाई जाती हैं। महाराष्‍ट्र में इस मौके पर जगह-जगह पर दही हांडी फोड़ने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। दही-हांडी की टोलियों के लिए पुरस्‍कार भी दिए जाते हैं। इस दौरान हांडी फोड़ने वालों पर महिलाएं अपने घरों की छत से रंग फेंकती हैं।

#पंजाब_का_होला_मोहल्ला –
पंजाब में भी इस त्योहार की बहुत धूम रहती है। सिखों के पवित्र धर्मस्थान आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिए यह धर्म-स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। कहते हैं गुरु गोबिन्द सिंह (सिखों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में सिख शौर्यता के हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है और वीरता के करतब दिखाए जाते हैं। इस दिन यहां पर आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।

#तमिलनाडु_की_कामन_पोडिगई –
तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किंवदन्ती है। प्राचीनकाल मे देवी सती (भगवान शंकर की पत्नी) की मृत्यु के बाद शिव काफी व्यथित हो गए थे। इसके साथ ही वे ध्यान में चले गए। उधर पर्वत सम्राट की पुत्री भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिए तपस्या कर रही थी। देवताओं ने भगवान शंकर की निद्रा को तोड़ने के लिए कामदेव का सहारा लिया। कामदेव ने अपने कामबाण से शंकर पर वार किया। भगवान ने गुस्से में अपनी तपस्या को बीच में छोड़कर कामदेव को देखा। शंकर भगवान को बहुत गुस्सा आया कि कामदेव ने उनकी तपस्या में विघ्न डाला है, इसलिए उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। अब कामदेव का तीर तो अपना काम कर ही चुका था, सो पार्वती को शंकर भगवान पति के रूप में प्राप्त हुए। उधर कामदेव की पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप में गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने में पीड़ा ना हो। साथ ही बाद में कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।

#बिहार_की_फागुन_पूर्णिमा –
फागु मतलब लाल रंग और पूर्णिमा यानी पूरा चांद। बिहार में इसे फगुवा नाम से भी जानते हैं। बिहार और इससे लगे उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्‍सों में इसे हिंदी नववर्ष के उत्‍सव के रूप में मनाते हैं। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। होली का त्‍योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है, जिसे यहां संवत्‍सर दहन के नाम से भी जाना जाता है और लोग इस आग के चारों ओर घूमकर नृत्‍य करते हैं। अगले दिन इससे निकले राख से होली खेली जाती है, जो धुलेठी कहलाती है और तीसरा दिन रंगों का होता है। स्‍त्री और पुरुषों की टोलियां घर-घर जाकर डोल की थाप पर नृत्‍य करते हैं, एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और पकवान खाते हैं।

#भीलों_की_होली –
राजस्‍थान और मध्‍यप्रदेश में रहने वाले भील आदिवासियों के लिए होली विशेष होती है। वयस्‍क होते लड़कों को इस दिन अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की छूट होती है। भीलों का होली मनाने का तरीका विशिष्‍ट है। इस दिन वो आम की मंजरियों, टेसू के फूल और गेहूं की बालियों की पूजा करते हैं और नए जीवन की शुरुआत के लिए प्रार्थना करते हैं।

#गुजरात_के_होली_राजा –
होली के मौके पर गुजरात में मस्‍त युवकों की टोलियां सड़कों पर नाचते-गाते चलती हैं। गलियों में ऊंचाई पर दही की मटकियां लगाई जाती हैं और युवकों को यहां तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया जाता है। इन मटकियों में दही के साथ ही पुरस्‍कार भी लटकते हैं। यह भगवान कृष्‍ण के गोपियों की मटकी फोड़ने से प्रेरित है। ऐसे में कौन युवक कन्‍हैया नहीं बनना चाहेगा और कौन होगी जो राधा नहीं बनना चाहेगी। सो, राधारानी मटकी नहीं फूटे इसलिए इन टोलियों पर रंगों की बौझार करती रहती हैं। जो कोई इस मटकी को फोड़ देता है, वह होली राजा बन जाता है। होली के पहले दिन जलने वाली होलिका की राख गौरी देवी को समर्पित करते हैं।

#मणिपुर_में_योसांग_होली –
मणिपुर में होली पूरे 6 दिनों तक चलती है, जिसे योसांग कहते हैं। यहां होली की शुरुआत में होलिका न बनाकर एक घासफूस की एक झोपड़ी बनाई जाती है और इसमें आग लगाते हैं। अगले दिन लड़कों की टोलियां लड़कियों के साथ होली खेलती है, इसके बदले में उन्‍हें लड़की को उपहार देना होता है। होली के दौरान लोग कृष्‍ण मंदिर में पीले और सफेद रंग के पारंपरिक परिधान पहनकर जाते हैं और संगीत और नृत्‍य करते हैं। इस दौरान थाबल चोंगा वाद्य बजाया जाता है और लड़के-लड़कियां नाचते हैं। वे एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इस त्‍योहार का उद्देश्‍य लड़के-लड़कियों को एक-दूसरे से मिलने के लिए मौका देना भी होता है ।

#विशेष –
आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार शिशिर ऋतु में ठंड के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और वसंत ऋतु में तापमान बढ़ने पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं। इनका बच्चों पर प्रकोप अधिक दिखाई देता है। इसके अलावा वसंत के मौसम का मध्यम तापमान शरीर के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से होली उत्सव के अंतर्गत आग जलाना, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है। शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है। शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन के भाव भी बदलते हैं। मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता है। इसलिए वसंत ऋतु को मोहक, मादक और काम प्रधान ऋतु माना जाता है । (प्रस्तुत लेख में लेखक के अपने विचार हैं  )

प्रस्तुति – ललित अग्रवाल
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ 

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